पूंजीवाद
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पूंजीवाद सामन्यत: उस आर्थिक प्रणाली या तंत्र को कहते हैं जिसमें उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व होता है। इसे कभी कभी "व्यक्तिगत मालिकाना" के पर्यायवाची के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है यद्यपि यहाँ "व्यक्तिगत" का अर्थ किसी एक व्यक्ति भी हो सकता है और व्यक्तियों का समूह भी। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सरकारी प्रणाली के अलावा निजी तौर पर स्वामित्व वाले किसी भी आर्थिक तंत्र को पूंजीवादी तंत्र के नाम से बुलाया जा सकता है। दूसरे तरीके से ये कहा जा सकता है कि पूंजीवादी तंत्र लाभ के लिए चलाया जाता है, जिसमें निवेश, वितरण, आय उत्पादन मूल्य, बाजार मूल्य इत्यादि का निर्धारण मुक्त बाजार में प्रतिस्पर्धा द्वारा निर्धारित होता है।
पूंजीवाद के सिद्दांत सबसे पहले औद्योगिक क्रांति के फलस्वरुप कार्ल मार्क्स के सिद्धांत की व्याख्या के संदर्भ में आया। 19 वीं सदी में कुछ जर्मन सिंद्धांतकारों ने इस अवधारणा को विकसित करना शुरु किया जो कार्ल मार्क्स के पूंजी और ब्याज के सिद्धांत से हटकर था। बीसवीं सदी के आरंभ में मैक्स वेबर ने इस अवधारणा को एक सकारात्मक ढंग से व्याख्यित किया। शीत युद्ध के दौरान पूंजीवाद की अवधारणा को लेकर काफी बहस चली।
पूंजीवादी आर्थिक तंत्र को युरोप में संस्थागत ढाँचे का रुप सोलहवीं सदी में मिलना शुरु हुआ। हलाकि पूंजीवादी प्रणाली के प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं परंतु आधुनिक युरोप में ज्यादातर अर्थव्यस्थाएँ सामंतवादी व्यवस्था के क्षरण के बाद अब पूंजीवादी हो चुकी हैं।