हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य
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हिन्दी की अनेक बोलियाँ हैं। यह बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।[१]
हिन्दी भाषा का भौगोलिक विस्तार काफी दूर–दूर तक है जिसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है:-
- क- हिन्दी क्षेत्र – हिन्दी क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: सत्रह बोलियाँ बोली जाती हैं , जिन्हें पाँच बोली वर्गों में इस प्रकार विभक्त कर के रखा जा सकता है- पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी , राजस्थानी हिन्दी, पहाडी हिन्दी और बिहारी हिन्दी।
- ख- अन्य भाषा क्षेत्र– इनमें प्रमुख बोलियाँ इस प्रकार हैं- दक्खिनी हिन्दी (गुल्बर्गी, बीदरी, बीजापुरी तथा हैदराबादी आदि), बम्बइया हिन्दी, कलकतिया हिन्दी तथा शिलंगी हिन्दी (बाजार-हिन्दी ) आदि ।
- ग- भारतेतर क्षेत्र – भारत के बाहर भी कई देशों में हिन्दी भाषी लोग काफी बडी संख्या में बसे हैं। सीमावर्ती देशों के अलावा यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, रुस ,जापान ,चीन तथा समस्त दक्षिण पूर्व व मध्य एशिया में हिन्दी बोलने वालों की बहुत बडी संख्या है। लगभग सभी देशों की राजधानियों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढी-पढाई जाती है। भारत के बाहर हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ – ताजुज्बेकी हिन्दी, मारिशसी हिन्दी, फीज़ी हिन्दी, सूरीनामी हिन्दी आदि हैं । [२]
हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, बृजभाषा, कन्नौजी, बुन्देली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, मैथिली , बज्जिका, मगही, झारखंडी , कुमाउँनी आदि
[संपादित करें] संदर्भ
- ↑ अपने घर में कब तक बेगानी रहेगी हिन्दी (एचटीएम)। वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 9 जून, 2008।
- ↑ हिन्दी (एचटीएमएल)। हिन्दी में लिनक्स। अभिगमन तिथि: 9 जून, 2008।
हिन्दी की बोलियाँ |
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अवधी | ब्रजभाषा | कन्नौजी | बुन्देली | बघेली | भोजपुरी | हरयाणवी | राजस्थानी | छत्तीसगढ़ी | मालवी | मैथिली | बज्जिका | मगही | झारखंडी | कुमाउँनी |