देवकीनन्दन खत्री
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हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में बाबू देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। केवल चन्द्रकान्ता उपन्यास को पढ़ने के लिये लाखों लोगों ने हिंदी सीखी। देवकीनन्दन खत्री जी का जन्म 18 जून 1861 (आषाढ़ कृष्ण 7 स० 1918) को पूसा-मुजफ्फ़रपुर, बिहार में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला ईश्वरदास था। उनके पूर्वज पंजाब के निवासी थे तथा मुग़लों के राज्यकाल में ऊँचे पदों पर कार्य करते थे। महाराज रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में लाला ईश्वरदास काशी में आकर बस गये। देवकीनन्दन खत्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फ़ारसी में हुई थी। बाद में उन्होंने हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी का भी अध्ययन किया।
देवकीनन्दन खत्री जी का काशी नरेश ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह से बहुत अच्छा सम्बंध था। इस सम्बंध के आधार पर उन्होंने चकिया और नौगढ़ के जंगलों के ठेके लिये। देवकीनन्दन खत्री जी बचपन से ही सैर-सपाटे के बहुत शौकीन थे। इस ठेकेदारी के काम से उन्हे पर्याप्त आय होने के साथ ही साथ उनका सैर-सपाटे का शौक भी पूरा होता रहा। वे लगातार कई-कई दिनों तक चकिया एवं नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की खाक छानते रहते थे। कालान्तर में जब उनसे जंगलों के ठेके छिन गये तब इन्हीं जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की पृष्ठभूमि में अपनी तिलिस्म तथा ऐयारी के कारनामों की कल्पनाओं को मिश्रित कर उन्होंने चन्द्रकान्ता उपन्यास की रचना की।
[संपादित करें] मुख्य रचनाएँ
- चन्द्रकान्ता: चन्द्रकान्ता उपन्यास को पढ़ने के लिये लाखों लोगों ने हिंदी सीखी। यह उपन्यास चार भागों में विभक्त है।
- चन्द्रकान्ता सन्तति: चन्द्रकान्ता की अभूतपूर्व सफलता से प्रेरित हो कर देवकीनन्दन खत्री जी ने चौबीस भागों वाली विशाल उपन्यास चंद्रकान्ता सन्तति की रचना की। उनका यह उपन्यास भी अत्यन्त लोकप्रिय हुआ।
- भूतनाथ (अपूर्ण): चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों को लिख पाये उसके बाद के शेष पन्द्रह भागों को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरे किये।
[संपादित करें] अन्य रचनाएँ
- कुसुम कुमारी
- वीरेन्द्र वीर उर्फ कटोरा भर खून
- काजर की कोठरी
- नरेन्द्र मोहिनी
- गुप्त गोदना