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विश्वकर्मा - विकिपीडिया

विश्वकर्मा

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विश्वकर्मा जी

== विश्वकर्मा कौन से हुए। साधन,औजार,युक्ति व निर्माण के देवता विश्वकर्मा जी के विषय में अनेकों भ्रांतियां हैं बहुत से विद्वान विश्वकर्मा इस नाम को एक उपाधि मानते हैं, क्योंकि संस्कृत साहित्य में भी समकालीन कई विश्वकर्माओं का उल्लेख है कालान्तर में विश्वकर्मा एक उपाधि हो गई थी, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मूल पुरुष या आदि पुरुष हुआ ही न हो, विद्वानों में मत भेद इस पर भी है कि मूल पुरुष विश्वकर्मा कौन से हुए। कुछ एक विद्वान अंगिरा पुत्र सुधन्वा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं तो कुछ भुवन पुत्र भौवन विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं,

   ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त के नाम से 11 ऋचाऐ लिखी हुई है। जिनके प्रत्येक मन्त्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि । यही सुक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो मे आया है ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती वेदों मे भी विशेषण रुप मे इसके प्रयोग अज्ञत नही है यह 

प्रजापति का भी विशेषण बन कर आया है। प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित।

परन्तु महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के निम्न श्लोक की भांति किंचित पाठ भेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता हैः- बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी । प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च । विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः ।।16।। महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पुर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। पुराणों में कहीं योगसिद्धा, वरस्त्री नाम भी बृहस्पति की बहन का लिखा है। शिल्प शास्त्र का कर्ता वह ईश विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य है, सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है,वह प्रभास ऋषि का पुत्र है और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। अर्थात अंगिरा का दौहितृ (दोहिता) है। अंगिरा कुल से विश्वकर्मा का सम्बन्ध तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं। जिस तरह भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता माना जाता हे और सभी कारीगर उनकी पुजा करते हे। उसी तरह चीन मे लु पान को बदइयों का देवता माना जाता है। प्राचीन ग्रन्थों के मनन-अनुशीलन से यह विदित होता है कि जहाँ ब्रहा, विष्णु ओर महेश की वन्दना-अर्चना हुई है, वही भनवान विश्वकर्मा को भी स्मरण-परिष्टवन किया गया है। " विश्वकर्मा" शब्द से ही यह अर्थ-व्यंजित होता है "विशवं कृत्स्नं कर्म व्यापारो वा यस्य सः"

अर्थातः जिसकी सम्यक् सृष्टि और कर्म व्यपार है वह विशवकर्मा है। यही विश्वकर्मा प्रभु है, प्रभूत पराक्रम-प्रतिपत्र, विशवरुप विशवात्मा है। वेदो मे " विशवतः चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वस्पात्" कहकर इनकी सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता दर्शायी गयी है। हमारा उद्देश्य तो यहाँ विश्वकर्मा जी का परिचय कराना है। माना कई विश्वकर्मा हुए हैं और आगे चलकर विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा हो तो यह बात भी मानी जानी चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति के अंतर्गत भी शिल्प संकायो, कारखानो, उधोगों मॆ भगवान विशवकमॉ की महता को प्रगत करते हुए प्रत्येक र्वग 17 सितम्बर को श्वम दिवस के रुप मे मनाता हे। यह उत्पादन-वृदि ओर राष्टीय समृध्दि के लिए एक संकलप दिवस है। यह जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान नारे को भी श्वम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ है। यह पर्व सोरवर्ष के कन्या संर्काति मे प्रतिवर्ष 17 सितम्बर विशवकर्मा-पुजा के रुप मे सरकारी व गैर सरकारी ईजीनियरिग संस्थानो मे बडे ही हषौलास से सम्पन्न होता हे। लोग भ्रम वश इस पर्व को विश्वकर्मा जयंति मानते हे। जो सर्वदा अनुचित हे। भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा कन्या की संक्राति (17 सितम्बर), कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा), भाद्रपद पंचमी (अंगिरा जयन्ति) मई दिवस आदि विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव पर्व है। इन पर्वो पर भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा-अर्चना की जाती है।

     भगवान विशवकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। जैसे भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा इस तिंथि की महिमा का पुर्व विवरण महाभारत मे विशेष रुप से मिलता है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा अर्चना की जाती है। यह शिलांग और पूर्वी बंगला मे मुख्य तौर पर मनाया जाता है। अन्नकुट (गोवर्धन पूजा) दिपावली से अगले दिन भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा अर्चना (औजार पूजा) की जाती है। मई दिवस, विदेशी त्योहार का प्रतीक है।, रुसी क्रांति श्रमिक वर्ग कि जीत का नाम ही मई मास के रुसी श्रम दिवस के रुप मे मनाया जाता है। 5 मई को ऋषि अंगिरा जयन्ति होने से विश्वकर्मा-पुजा महोत्सव मनाया जाता है

भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि माघ मास त्रयोदशी शुक्ल पक्ष दिन रविवार का ही साक्षत रुप से सुर्य की ज्योति है। ब्राहाण हेली को यजो से प्रसन हो कर माघ मास मे साक्षात रुप मे भगवान विश्वकर्मा ने दर्शन दिये। श्री विश्वकर्मा जी का वर्णन मदरहने वृध्द वशीष्ट पुराण मे भी है।


माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ। अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च।।

     धर्मशास्त्र भी माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा जयंति बता रहे है। अतः अन्य दिवस भगवान विश्वकर्मा जी की पुजा-अर्चना व महोत्सव दिवस के रुप मे मनाऐ जाते है। ईसी तरह भगवान विश्वकर्मा जी की जयन्ती पर भी विद्वानों में मतभेद है। भगवान विश्वकर्मा जी की वर्ष मे कई बार पुजा व महोत्सव मनाया जाता है। 

निःदेह यह विषय निर्भ्रम नहीं है। हम स्वीकार करते है प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्ठापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेकों विश्वकर्मा हुए हैं। यह अनुसंधान का विषय है। अतः सभी विशवकर्मा मन्दिर व धर्मशालाऔं, विशवकर्मा जी से सम्भधींत संस्थाऔं, संघ व समितिऔं को प्रस्ताव पारित करके भारत सरकार से मांग जानी चाहीए की सम्पुर्ण संस्कृत साहित्य का अवलोकन किया जाय, भारत की विभिन्न युनीर्वशटीजो मे इस विष्य पर शौध की जानी चाहीए, विदेशों में भी खोज की जाय, तथा भारत सरकार विश्वकर्मा वशिंयो का सर्वेक्षण किसी प्रमुख मीडिया एजेन्सी से करवाऐ। श्रुति का वचन है कि विवाह, यज्ञ , गृह प्रवेश आदि कर्यो मे अनिवार्य रुप से विशवकर्मा-पुजा करनी चाहिए

विवाहदिषु यज्ञषु गृहारामविधायके। सर्वकर्मसु संपूज्यो विशवकर्मा इति श्रुतम।।

    स्पष्ट है कि विशवकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। अतएव प्रत्येक प्राणी सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी ओर विज्ञान के जनक भगवान विशवकर्मा जी की पुजा-अर्चना अपनी व राष्टीय उन्नति के लिए अवश्य करनी चाहिए।


'जगदचक विश्वकर्मन्नीश्वराय नम: ।।

[संपादित करें] विशवकर्मा धीमान समाज की वरीयताः एक निर्धारीत अध्ययन

   विश्वकर्मा समाज ने जितना संधर्ष किया, उतना परिणम सामने नही आया। अभी इस समाज मे संतोषजनक जागृति नही आई है।अगर विश्वकर्मा हमारे निर्माता है।, तो हम समाज के निर्माता है। नए वातावरण के लिए शिक्षित होना अति आवश्यक है आधुनिक कंप्युटरीकृत युग मे हमे देखना है समाज का निर्माण केसे करना है (महेन्द्र सिह पंचाल) 7 अक्तुबर, 2007 सहारनपुर सम्मेलन पर विचार वयक्त करते हुए माघी राम धीमान जी के कहा की समाज के सभी नेताऔ ने समाज के एकजट होने व बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने की बात कही परन्तु यह किसी ने भी नही सुझाया की यह विशाल समाज एक केसे हो सकता है और इसके लिए समय कोन देगा।
     वर्तमान अध्ययन मे प्राथमिक आकडे प्रश्नपत्र के माध्यम से प्राप्त किए गए हैं। प्रश्नपत्र मे 10 धीमान समाज से सम्बंधीत उपक्लपनाऔं को परिभषित किया गया हैं। जिसे धीमान समाज के लोगो से न.5 मापनी पूर्णतः सहमत के लिए 1, केवल सहमत के लिए 2, औसत के लिए 3, असहमत के लिए 4,पूर्णतः असहमत के लिए 5 न. देकर भरवाया गया है। उपक्लपनाऔं का विवरण तालिका न.1 मे दिया गया है। यह प्रश्नपत्र धीमान समाज के 110 प्रतिवादियों पर प्रयोग मे लाया गया।
       प्राथमिक आकडों का विशलेषण माध्य,Mean, S.D, सह सम्बधं व कारक विशलेषण Factor Analysis जैसी नविनतम तकनीको का प्रयोग करके किया गया है। माध्य,Mean का प्रयोग औसत निकालने के लिए व S.D का प्रयोग आकडों के पृथक्करण के लिए किया गया है सह सम्बधं उपक्लपनाऔं मे आपसी सम्बधं को दर्शाता है। कारक विशलेषण के द्वारा आकडों को कम करके उपक्लपनाऔं का परिभषित किया गया है।

परिणाम व चर्चा

    प्राथमिक आकडे धीमान समाज के 110 प्रतिवादियों पे आधारित हैं जिसमें हर स्तर व व्यवसाय के प्रतिवादियों को लिया गया है  तालिका न.2 मे माध्य,Mean का प्रयोग कर औसत व S.D का प्रयोग आकडों के पृथक्करण के लिए किया गया है। जिसमे पाया गया है कि प्रतिवादियों ने मान की  शिक्षा का स्तर बढ़ने से श्री विशवकर्मा धीमान समाज  का जरा सा विकास  हुआ  है। प्रतिवादि,  श्री विशवकर्मा धीमान समाज के विकास लिए बच्चों को स्वयं रोजगार मे न लगाकर  उच्च शिक्षा दिलवाना चाहते हैं।  प्रतिवादियों के अनुसार श्री विशवकर्मा धीमान समाज के कुछ बच्चे अपनी पढ़ाई को आर्थिक तंगी, पारिवारिक कल्ह व पारिवारिक लापरवाही के कारण बीच मे ही छोड देते हैं
        प्रतिवादि मानते है कि श्री विशवकर्मा धीमान समाज मे पारिवारिक कल्ह का कारण रोजगार का न होना व आर्थिक तंगी हैं प्रतिवादियों के अनुसार श्री विशवकर्मा धीमान समाज मे कुठां व आपसी भाई चारे कि कमी का कारण, शिक्षा का न होना व साकारात्मक सोच की कमी है प्रतिवादि श्री विशवकर्मा धीमान समाज के कल्याण के लिए कोई संघ/ समिति/संगठन की आवशयक्ता पर बल देते है। वे चाहते हैं कि श्री विशवकर्मा धीमान समाज के संघ/समिति/संगठन पदाधिकारियों का उच्च शिक्षित हो, उनकी राजनैतिक में भागीदारिता हो तथा अच्छी वितिय स्थिति भी हो।  प्रतिवादियों के अनुसार श्री विशवकर्मा  धीमान समाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग निःस्वार्थ भाव व लगन से सामाज की समस्याऔ की जानकारी प्राप्त कर उनका समाधान नही निकालते हैं  प्रतिवादि श्री विशवकर्मा धीमान समाज के लोगो मे समय की कमी, साधनो कि कमी व आर्थिक तंगी आदि मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण  मानते हैं। प्रतिवादिय समाज के लोगो के द्वारा पी जाने वाली शराब के मख्य कारण बेरोजगारी, शिक्षा का न होना, पारिवारिक कल्ह, पारिवारिक लापरवाही, ऊर्जा का स्त्रोत व युवाओं का बढ़ता शोंक मानते है 
      उपक्लपनाऔं के आपसी सम्बधं को दर्शाया गया है तालिका मे उपक्लपनाऔं का आपसी सम्बंध साकारातमक व नाकारातमक भी है जो की .01% व .05% अशुधि पर महत्वपूर्ण है  तालिका  के आकडो के अनुसार सामज के विकास  व बच्चों को  उच्च शिक्षा न दिलवाकर स्वयं रोजगार मे लगाना मे नाकरात्मक सार्थक सम्बंध है सामज के विकास का सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग की समस्याऔं के समाधान निकालने मे भुमिका से साकारात्मक सार्थक सम्बंध है इसी प्रकार से उपक्लपना बच्चों को  उच्च शिक्षा न दिलवाकर स्वयं रोजगार मे लगाना का व धीमान समाज के कल्याण के लिए कोई संघ/समिति/संगठन का होना आवशयकता मे नाकरात्मक सार्थक सम्बंध है जबकी नशे की समस्या से साकारात्मक सार्थक सम्बंध है समाज मे बच्चों की पढ़ाई बीच मे छोडने की समस्या का, धीमान समाज मे पारिवारिक कल्ह का कारण, धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण व नशे की समस्या से साकारात्मक सार्थक सम्बंध दर्शाया गया है धीमान समाज मे पारिवारिक कल्ह का नशे की समस्या व धीमान समाज के संघ/समिति/संगठन पदाधिकारियों का उच्च शिक्षित होना, राजनैतिक भागीदारिता होना से साकारात्मक सार्थक सम्बंध है जबकी सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग की समस्याऔं के समाधान निकालने मे भुमिका से नाकरात्मक सार्थक सम्बंध है सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग की समस्याऔं के समाधान निकालने मे भुमिका से धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण व नशे की समस्या से नाकरात्मक सार्थक सम्बंध है धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण का नशे की समस्या से बहुत अच्छा साकारात्मक सार्थक सम्बंध है

कारक विशलेषण के द्वारा उपक्लपनाऔं को कम करके कारकों का विशलेषण किया गया है।

    इस अध्ययन मे 3 कारक मिले है जो की 55% लोडिंग को दर्शाते है। निकाले गए समुह की .450-.868 क्षेणी के  बीच मे है। कारकों का विवरण इस प्रकार हैः
   पहले कारक का नाम सामाजिक समस्याए व समाधान है इसमे विशेष रुप से  समाज मे बच्चों की पढ़ाई बीच मे छोडने की समस्या, सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग की समस्याऔं के समाधान निकालने मे भुमिका,धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण, नशे की समस्या को परिभाषित किया गया है। यह दर्शाता है धीमान समाज सामजिक समस्याऔं को लेकर जागरुक है। अध्ययन के अनुसार धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने की समस्या सबसे जयादा सामने निकल के आई है नशे की समस्या व समाज मे बच्चों की पढ़ाई बीच मे छोडने की समस्या भी अन्य बडी समस्या है।
  दुसरे कारक मे शिक्षा व विकास के नाम से शिक्षा का स्तर बढ़ने से धीमान समाज  का विकास, बच्चों को  उच्च शिक्षा न दिलवाकर स्वयं रोजगार मे लगाना, धीमान समाज मे कुठां व आपसी भाई चारे कि कमी का कारण, धीमान समाज के कल्याण के लिए कोई संघ/ समिति/संगठन का होना आवशयक आदि विष्यों को लिया गया है यह दर्शाता है धीमान समाज विकास चाहता है यह विकास मे उच्च शिक्षा  को साहयक मानता है। धीमान समाज मे कुठां व आपसी भाई चारे कि कमी का कारण अपना सामजिक विकास नही कर पा रहा है। धीमान समाज के कल्याण व विकास  के लिए कोई संघ/ समिति/संगठन का होने आवशयकता पर बल दिया गया है

पारिवारीक समस्या व नैतृत्व गुण न. 3 कारक है जिसमे धीमान समाज मे पारिवारिक कल्ह का कारण वधीमान समाज के संघ/समिति/संगठन पदाधिकारियों का उच्च शिक्षित होना व राजनैतिक भागीदारिता होना आदि विष्य सम्मलित है यह दर्शाता है धीमान समाज पारिवारिक समस्याऔं का समाधान संगठन के माध्यम से चाहता है इसके लिए यह धीमान समाज के संघ/समिति/संगठन पदाधिकारियों का उच्च शिक्षित होना व राजनैतिक भागीदारिता होना आवशयक मानता है

      आकडो के अनुसार सामज के विकास के बच्चों को  उच्च शिक्षा दिलवाना आवश्यक है। श्री विशवकर्मा धीमान समाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग निःस्वार्थ भाव व लगन से सामाज की समस्याऔ की जानकारी प्राप्त कर उनका समाधान निकालना भी सामज के विकास मे साहयक है। समाज मे वयापक नशे की समस्या मे समाज सुधार समिति व अन्य जनक्लयाण की संस्था बनाकर सुधार लाया जा सकता है। समाज मे बच्चों की पढ़ाई बीच मे छोडने की समस्या का समाधान सामुहिक कार्यकर्मों के माध्यम से लाया जा सकता है। नशा, पारिवारिक कल्ह व बेरोजगारी भी बच्चों की शिक्षा को प्रभावीत करती है पारिवारिक कल्ह की दुर करने मे सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इसलिए इनका उच्च शिक्षित होना व राजनैतिक भागीदारिता होना अवशयक है। धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण, सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग इनकी समस्याऔं का समाधान निकालने मे असमर्थ हैं। लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के मुख्य कारण नशे की समस्या है

अध्ययन की परिमियत्ता य ह अध्ययन के परिणाम केवल जीन्द शहर के 110 धीमान समाज से प्रतिवदियो के सेम्पल पर आधारित है। अध्ययन मे उपक्लपनाऔं को सांख्ककीय तकनिकों से स्थयापित किया गया है उपक्लपनाऔं को धीमान समाज के नेता , बुध्दिजीवि वर्ग के विचारों व पूर्व सर्वे से लिया गया है। भविष्य मे और बडे सेम्पल मे विभिन्न उपक्लपनाऔं के साथ अन्य क्षेत्रौं को भी इसमे सम्मलित करके अध्ययन किया जा सकता है


तालिका न.1 उपक्लपनाऔं का विवरण

1.शिक्षा का स्तर बढ़ने से श्री विशवकर्मा धीमान समाज का विकास हुआ है 2.श्री विशवकर्मा धीमान समाज के विकास लिए बच्चों को उच्च शिक्षा न दिलवाकर स्वयं रोजगार मे लगाना चाहिए 3.श्री विशवकर्मा धीमान समाज के बच्चे अपनी पढ़ाई को आर्थिक तंगी, पारिवारिक कल्ह व पारिवारिक लापरवाही के कारण बीच मे ही छोड देते हैं 4.श्री विशवकर्मा धीमान समाज मे पारिवारिक कल्ह का कारण रोजगार का न होना व आर्थिक तंगी हैं 5.श्री विशवकर्मा धीमान समाज मे कुठां व आपसी भाई चारे कि कमी का कारण, शिक्षा का न होना व साकारात्मक सोच की कमी है 6.श्री विशवकर्मा धीमान समाज के कल्याण के लिए कोई संघ/ समिति/संगठन का होना आवशयक है 7. श्री विशवकर्मा धीमान समाज के संघ/समिति/संगठन पदाधिकारियों का उच्च शिक्षित होना, राजनैतिक भागीदारिता होना व अच्छी वितिय स्थिति का होना आवशयक है 8.श्री विशवकर्मा धीमान समाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग निःस्वार्थ भाव व लगन से सामाज की समस्याऔ की जानकारी प्राप्त कर उनका समाधान निकालते हैं 9.श्री विशवकर्मा धीमान समाज के लोगो मे समय की कमी, साधनो कि कमी व आर्थिक तंगी आदि मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण हैं 10.श्री विशवकर्मा धीमान समाज के लोगो के द्वारा पी जाने वाली शराब के मख्य कारण बेरोजगारी, शिक्षा का न होना, पारिवारिक कल्ह, पारिवारिक लापरवाही, ऊर्जा का स्त्रोत व युवाओं का बढ़ता शोंक है तालिका न.4 कारक विशलेषण के द्वारा आकडों को कम करके उपक्लपनाऔं का परिभषित किया गया है। F1 सामाजिक समस्याए व समाधान 1. समाज मे बच्चों की पढ़ाई बीच मे छोडने की समस्या 2. सामाज के नेता व बुध्दिजीवि वर्ग की समस्याऔं के समाधान निकालने मे भुमिका 3. धीमान समाज के लोगों के द्वारा मिटिगों मे भागीदारीता न लेने के कारण 4. नशे की समस्या F2. शिक्षा व विकास1. शिक्षा का स्तर बढ़ने से धीमान समाज का विकास 2. बच्चों को उच्च शिक्षा न दिलवाकर स्वयं रोजगार मे लगाना 3. धीमान समाज मे कुठां व आपसी भाई चारे कि कमी का कारण 4. धीमान समाज के कल्याण के लिए कोई संघ/ समिति/संगठन का होना आवशयक F3. पारिवारीक समस्या व नैतृत्व गुण1. धीमान समाज मे पारिवारिक कल्ह का कारण 2. धीमान समाज के संघ/समिति/संगठन पदाधिकारियों का उच्च शिक्षित होना, राजनैतिक भागीदारिता होना

(अध्ययनकर्ता एक शोध विधार्थी है)

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