विभिन्न उद्योगों का भारत में विकास
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
अनुक्रम |
[संपादित करें] विभिन्न उद्योगों का भारत मे विकास
1990 के बाद से भारत मे काफी सारे उद्योगों का तेज़ी से विकास हुआ है। ज़्यादातर लोगों के नज़रिये से 1990 से अबक किये गये आर्थिक सुधार । आर्थिक सुधारों ने ही भारत को दुनिया में एक सशक्त आर्थिक देश का दर्ज़ा दिलाया। विभिन्न उद्योगों का भारत मे विकास अभूत्पूर्व है।
[संपादित करें] सॉफ्ट्वेयर
सॉफ्ट्वेयर के क्शेत्र मे भारत मे '70 के दशक से विकास शुरू हुआ । ये वोह समय था जब इंफोसिस, विप्रो, सत्यम, आदि भारतीय कम्पनियों की स्थापना हुई। '80 के दशक मे भारत के तत्कालीन प्रधान्मंत्री श्री राजीव गान्धी ने भारत मे कम्प्यूटर के प्रयोग को पहली बार सरकारी रूप से प्रोत्साहन दिया । हालाकि उस समय सॉफ्ट्वेयर उद्योग ने ज़्यादा तरक्की नही की पर ये इस उद्योग की नींव थी । 1990 के बाद भारत मे सॉफ्ट्वेयर और हार्ड्वेयर पे लगने वाले शुल्क और कर । करों को कम करना शुरू कर दिया । देश भर मे सॉफ्ट्वेयर पार्क्स बनाये गये । बैंगलोर मे बहुत सारी सॉफ्ट्वेयर कम्पनियों ने तरक्की की । धीरे धीरे भारत का सॉफ्ट्वेयर निर्यात बढ्ता चला गया । भारतीय सॉफ्ट्वेयर कम्पनियो ने विश्व भर मे काफी नाम कमाया । बहुत सारे कौलेजों से निकले हुए छत्रों को इन कम्पनियों ने नौक्री दी। शुरू मे भारत विश्व को सस्ता सॉफ्ट्वेयर देने के लिये मश्हूर हुआ। धीरे धीरे अंतर-राश्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के चलते इन कम्पनियों की गुण्वत्ता मे भी सुधार आया और इन्हे पह्ले से भी ज़्यादा बिज़्नेस मिलने लगा । गलत नही होगा अगर ये कहा जाये कि सॉफ्ट्वेयर उद्योग ही वह उद्द्योग है जिसकी सफल्ता बाद मे दूसरे उद्योगों मे भी दिखने लगी । '90 के दशक मे भारत मे बहुत सारी मल्टि-नैशनल कम्पनियों ने भी अपने दफ्तर शुरू किये । जैसे आईबीएम, इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, सैप, ऑर्क्ल। और बंगलोर, और फिर सरा भारत, एक सॉफ्ट्वेयर केन्द्र के रूप मे जाना जाने लगा ।
[संपादित करें] बीपीओ
सॉफ्ट्वेयर के बाद अगला उद्योग जिसने भारत के मध्यम वर्गीय युवा वर्ग को पह्चान दिलायी । इस उद्योग की शुरुआत '90 के दशक मे हुई ।
[संपादित करें] बैंकिंग
पहले भारत मे सिर्फ सर्कारी बैंक होते थे । स्टेट बैंक और उसकी दूसरी बैंकों का वर्चस्व होता था। ये बैंक काफी इनैफिशियैंट होते थे । इन्मे बाबूगीरी और लाल फीताशाही क बोल्बाला था। नयी तक्नीकों से, जैसे कम्प्यूटर, एटीएम, इंटर्नेट, से इनका कोइ वास्ता नही था। उस समय बैंक उपभोगताओं का खाता खोल के उनपे एह्सान करते थे । बैंको से ऋण लेना काफी मुश्किल होता था। ऋण लेने जैसे साधारण कामों के लिये रिश्वत देना आम बात थी ।
1990 के बाद निजी क्शेत्रों के बैंक जैसे आईसीआईसीआई बैंक, ऐचडीऐफसी बैंक, यूटीआई बैंक, आये । बाद मे कयी अंतर-राश्ट्रीय बैंको को भी बाज़ार मे खुली अर्थव्यवस्था के अंतर्गत आने का मौका मिला । स्टेट बैंक और कयी अन्य बैंकों का अंशिक निजीकरण हुआ और इनके शेयर शेयर बाज़ार मे उतारे गये । बाज़ार मे इस तरह की प्रतिस्पर्धा के कयी फयदे हुए । उपभोगताओं को बेह्तर सेवा मिलने लगी । बाबूगीरी और लाल फीताशाही से सरकारी बैंकों को निजात मिली । रिश्वत के कारोबार का सरकारी बैंकों से बोरिया बिस्तर गोल हो गया। '00 के दशक मे और भी कयी परिवर्तन हुए । भारतीय रिसर्व बैंक ने अपनी ज़िम्मेदारियों को ठीक से निभाना शुरू किया । अब बाज़ारवाद के चलते ब्याज दर । ब्याज दरें घटने लगी । गृह ऋण की ब्याज दर जो '90 के शुरुआती सालों मे 17%-20% तक हुआ करती थी, वह घट के 2005 मे 7.5-8% पे आ गयी। हालाकि 2006 मे ये फिर से बढ के 8.5-9% के करीब आगयी है । ब्याज दर । ब्याज दरों में आयी गिरावट और बैंकों मे पार्दर्शिता के बढ्ने से लोगो को अपनी ज़रूरतों के लिये आसानी से और बिना रिश्वत दिये ऋण मिलने लगा । इससे कफी सारे नये उद्योग-धन्दों को बढावा मिला । अचल सम्पत्ति के बाज़ार मे जम के उछाल आया । 1990 के पहले जहान घर खरीदना बुढापे का काम होता था वही अब इत्ना आसान हो गया कि बहुत लोग 25-30 साल की उम्र मे ही घर खरीदने लगे ।
[संपादित करें] रीटेल
रीटेल उद्योग को '00 के दशक से बढावा मिल्ना शुरू हुआ । अभी ये उद्योग प्रारम्भिक अवस्था मे है । पर यहाँ तरक्की के निशान पूत के पाँव पालने मे ही दिख रहे है। इस उद्योग ने 2004-2006 के दौरान हज़ारों लोगो के लिये रोज़्गार के द्वार खोल दिये है । बडे शहरों मे ऑलरेडी कयी मॉल खुल चुके है। फूड्वर्ल्ड, मंडे टु संडे, बिग बाज़ार, पैंटालून, विवेक्स, पाई इलैक्ट्रिकल्स, शॉपर्स स्टॉप, ईज़ोन जैसे बडे रीटेल स्टॉप भारत के प्रमुख शह्रों मे आम हो गये है। विशाल मैगामार्ट जैसे रीटेल दुकानें मंझोले शहरों मे बढ रहे है । हाल ही मे रिलायंस ने बडे पैमाने पे रीटेल मे उतरने का ऐलान कर के देश भर मे सैक्डों स्टोर खोलने का मन बना लिया है। इस उद्योग मे काफी उत्साह दिखायी देता है। अगर ऐसे ही चला तो शीघ्र ही ये उद्योग बहुत तरक्की कर लेगा।
[संपादित करें] विमानन
90 के शुरुआती वर्शो तक इस उद्योग मे सरकारी कम्पनियों - इंडियन एयर्लाइंस और एयर इंडिया का एकाधिकार था । फिर मैदान मे आये सहारा और जैट । सरकारी एकाधिकार टूटा और भारत मे पह्ली बार इस उद्योग मे कोइ प्रतिस्पर्धा देखने को मिली । ये वोह समय था जब कि विमान मे उडान भरना रहीसी का प्रतीक और मध्यम वर्ग का सपना था। '00 के दशक मे डेक्कन एयर्वेज़, स्पाइस जैट, किंगफिशर एयरलाईन्स, गो एयर्वेज़, इंडिगो, जैसी कयी कम्पनियाँ शुरू हुई । दूसरे उद्योगो की तरह यहाँ भी प्रतिस्पर्धा के बढने से किराये मे भारी गिरावट आयी । बैंगलोर से दिल्ली का किराया जहान 2001 मे 9000 रुपये से ले के 13,000 रुपये तक होता था, वही 2006 मे सस्ती विमान सेवाओं मे ये 3000 रुपये रह गया। इस उद्योग मे बहुत सारे नये रोज़्गार बने । 4 साल मे विमान यात्रा करने वलों की संख्या इस कदर बढ गयी कि हवायीअड्डों पे जगह की कमी पड गयी। आज्कल बैंगलोर और हैदराबाद समेत कयी दूसरे शहरों मे नये हवायी अड्डों का निर्माण चल रहा है।
भारत के दूसरे उद्योगों के बारे मे लिख के इस लेख को बढाने में विकिपीडिया की मदद करें