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महाजनपद - विकिपीडिया

महाजनपद

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महाजनपद प्राचीन भारत मे राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को कहते थे । उत्तर वैदिक काल में कुछ जनपदों का उल्लेख मिलता है । बौद्ध ग्रंथों में इनका कई बार उल्लेख हुआ है ।

[संपादित करें] गणना और स्थिति

ईसा पूर्व 600 में भारत के महाजनपदों की स्थिति
ईसा पूर्व 600 में भारत के महाजनपदों की स्थिति

ईसा पूर्व छठी सदी में वैयाकरण पाणिनी ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है । इनमें से तीन - मगध, कोसल तथा वत्स को महत्वपूर्ण बताया गया है ।

आरंभिक बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में इनके बारे में अधिक जानकारी मिलती है । यद्यपि कुल सोलह महाजनपदों का नाम मिलता है पर ये नामाकरण अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न हैं । इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि ये अन्तर भिन्न-भिन्न समय पर राजनीतिक परिस्थितियों के बदलने के कारण हुआ है । इसके अतिरिक्त इन सूचियों के निर्माताओं की जानकारी भी उनके भौगोलिक स्थिति से अलग हो सकती है । बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय , महावस्तु मे १६ महाजनपदों का उल्लेख है-

ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान से बिहार तक और हिन्दुकूश से गोदावरी नदी तक में फैला हुआ था । दीर्घ निकाय के महागोविंद सुत्त में भारत की आकृति का वर्णन करते हुए उसे उत्तर में आयताकार तथा दक्षिण में त्रिभुजाकार यानि एक बैलगाड़ी की तरह बताया गया है । बौद्ध निकायों में भारत को पाँच भागों में वर्णित किया गया है - उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वी भाग) दक्षिणापथ तथा अपरांत (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है । इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसापूर्व छठी सदी से ही परिकल्पित है । इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनी की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पष्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था । कौटिल्य ने एक चक्रवर्ती सम्राट के अन्तर्गत संपूर्ण देश की रादनीतिक एकता की परिकल्पना की थी । ईसापूर्व छठी सदी से ईसापूर्व दूसरी सदी तक प्रचलन में रहे आहत सिक्को के वितरण से अन्देशा होता है कि ईसापूर्व चौथी सदी तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी । इससे उस युग में भारत के एकीकरण की साफ़ झलक दिखती है ।

[संपादित करें] सत्ता संघर्ष

ईसापूर्व छठी सदी में जिन चार महत्वपूर्ण राज्यों ने प्रसिद्धि प्राप्त की उनके नाम हैं - मगध के हर्यंक, कोसल के इक्ष्वाकु, वत्स के पौरव और अवंति के प्रद्योत । हर्यंक एक ऐसा वंश था जिसकी स्थापना बुहद्रथों को परास्त करवने के लिए बिंबिसार द्वारा मगध में की गई थी । प्रद्योतों का नाम ऐसा उस वंश के संस्थापक के कारण ही था । संयोग से महाभारत में वर्णित प्रसिद्ध राज्य - कुरु-पांचाल, काशी और मत्स्य इस काल में भी थे पर उनकी गिनती अब छोटी शक्तियों में होती थी ।

ईसापूर्व छठी सदी में अवंति के राजा प्रद्योत ने कौशाम्बी के राजा तथा प्रद्योत के दामाद उदयन के साथ लड़ाई हुई थी । उससे पहले उदयन ने मगध की राजधानी राजगृह पर हमाला किया था । कोसल के राजा प्रसेनजित ने काशी को अपने अधीन कर लिया और बाद में उसके पुत्र ने कपिलवस्तु के शाक्य राज्य को जीत लिया । मगध के राजा बिंबिसार ने अंग को अपने में मिला लिया तथा उसके पुत्र अजातशत्रु ने वैशाली क लिच्छवियों को जीत लिया ।

ईसापूर्व पाँचवी सदी में पैरव और प्रद्योत सत्तालोलुप नही रहे और हर्यंको तथा इक्ष्वांकुओं ने राजनीतिक मंच पर मोर्चा सम्हाल लिया । प्रसेनजित तथा अजातशत्रु के बीच संघर्ष चलता रहा । इसका हंलांकि कोई परिणाम नहीं निकला और अंततोगत्वा मगध के हर्यंकों को जात मिली । इसके बाद मगध उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया । ४७५ ईसापूर्व में अजातशत्रु की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उदयिन ने सत्ता संभाली और उसी ने मगध की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र (पटना) स्थानांतरित की । हँलांकि लिच्छवियों से लड़ते समय अजातशत्रु ने ही पाटलिपुत्र में एक दुर्ग बनवाया था पर इसका उपयोग राजधानी के रूप में उदयिन ने ही किया ।

उदयिन तथा उसके उत्तराधिकारी प्रशासन तथा राजकाज में निकम्मे रहे तथा इसके बाद शिशुनाग वंश का उदय हुआ । शिशुनाग के पुत्र कालाशोक के बाद महापद्म नंद नाम का व्यक्ति सत्ता पर काबिज हुआ । उसने मगध की श्रेष्ठता को और उँचा बना दिया ।


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