भारत का विभाजन
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दक्षिण एशिया तथा भारत का इतिहास |
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पाषाण युग | ७०,०००–३३०० ई.पू. | ||||
• मेहरगढ़ संस्कृति | • ७०००–३३०० ईपू | ||||
सिन्धु घाटी सभ्यता | ३३००–१७०० ईपू | ||||
हड़प्पा संस्कृति | १७००–१३०० ईपू | ||||
वैदिक काल | १५००–५०० ईपू | ||||
पाषाण युग | १२००–३०० ईपू | ||||
• महाजनपद | • ७००–३०० ईपू | ||||
• मगध साम्राज्य | • ५४५–३२० ईपू | ||||
• मौर्य साम्राज्य | • ३२१–१८४ ईपू | ||||
मध्यकालीन राज्य | २३० ईपू– १२७९ | ||||
• सातवाहन साम्राज्य | • २३० ईपू – १९९ | ||||
• कुषाण साम्राज्य | • ६० – २४० | ||||
• गुप्त साम्राज्य | •२८०–५५० | ||||
• पाल साम्राज्य | • ७५०–११७४ | ||||
• चौल साम्राज्य | • २५० ईपू–१०७० | ||||
इस्लामी सल्तनतें | १२०६–१५९६ | ||||
• दिल्ली सल्तनत | • १२०६–१५२६ | ||||
• दक्कन सल्तनत | • १४९०–१५९६ | ||||
होयसल साम्राज्य | १०४०–१३४६ | ||||
ककातिया साम्राज्य | १०८३–१३२३ | ||||
विजयनगर साम्राज्य | १३३६–१५६५ | ||||
मुगल साम्राज्य | १५२६–१८५७ | ||||
मराठा साम्राज्य | १६७४–१८१८ | ||||
सिख राज्यसंघ | १७१६–१८४९ | ||||
अंग्रेजी शासन | १८५८–१९४७ | ||||
भारत का विभाजन | १९४७ के पश्चात | ||||
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1947 में जब ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता मिली तो साथ ही भारत का विभाजन करके 14 अगस्त को पाकिस्तानी डोमिनियन (बाद में इस्लामी जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को भारतीय यूनियन (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। (नेपाल और भूटान इस दौरान भी स्वतंत्र राज्य थे और इस बंटवारे से प्रभावित नहीं हुए।)
15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतंत्र राष्ट्र बने। लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराय लुइस माउंटबैटन कराची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया जाता है।
भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 5 लाख[१] लोग मारे गए, और करीब 1.45 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत संप्रदाय वाले देश में शरण ली।[तथ्य वांछित]
अनुक्रम |
[संपादित करें] पृष्ठभूमि
भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।
हिन्दू बहुमत वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को शक की निगाह से देखने वाले मुस्लिम नेताओं ने 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की। मुस्लिम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मांगें रखीं। 1930 में मुस्लिम लीग के सम्मेलन में प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली बार मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की माँग उठाई।[तथ्य वांछित] 1935 में सिंध प्रांत की विधान सभा ने भी यही मांग उठाई। इक़बाल और मौलाना मुहम्मद अली जौहर ने मुहम्मद अली जिन्ना को इस मांग का समर्थन करने को कहा।[तथ्य वांछित] इस समय तक जिन्ना हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्ष में थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें लगने लगा कि कांग्रेसी नेता मुसलमानों के हितों पर ध्यान नहीं दे रहे। लाहौर में 1940 के मुस्लिम लीग सम्मेलन में जिन्ना ने साफ़ तौर पर कहा कि वह दो अलग-अलग राष्ट्र चाहते हैं: "हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं।.. एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा।"[तथ्य वांछित]
हिन्दू महासभा जैसे हिन्दू संगठन भारत के बंटवारे के पक्ष में नहीं थे, लेकिन मानते थे कि हिन्दुओं और मुसलमानों में मतभेद हैं। 1937 में इलाहाबाद में हिन्दू महासभा के सम्मेलन में एक भाषण में वीर सावरकर ने कहा,
“ | आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान।[२] | „ |
कांग्रेस के अधिकतर नेता गुट-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे। महात्मा गांधी का विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिये। उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया: "मेरी पूरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है।"[तथ्य वांछित] बहुत सालों तक गांधी और उनके अनुयायियों ने कोशिश की कि मुसलमान कांग्रेस को छोड़ कर न जाएं, और इस प्रक्रिया में हिन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत चिढ़ गए।
हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के नेताओं ने एक-दूसरे के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में डायरेक्ट ऐक्शन डे मनाया, जिस के दौरान कलकत्ता में दंगे हुए और करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए।
[संपादित करें] विभाजन की प्रक्रिया
भारत के विभाजन के ढांचे को 3 जून प्लान या माउंटबैटन प्लान का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट (भारतीय स्वतंत्रता कानून) पास किया जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ (देखें भारत का राजनैतिक एकीकरण)। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली।[३]
[संपादित करें] संपत्ति का बंटवारा
ब्रिटिश भारत की संपत्ति को दोनों देशों के बीच बाँटा गया लेकिन यह प्रक्रिया बहुत लंबी खिंचने लगी। गांधीजी ने भारत सरकार पर दबाव डाला कि वह पाकिस्तान को धन जल्दी भेजे[तथ्य वांछित] जबकि इस समय तक भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था, और दबाव बढ़ाने के लिए अनशन शुरु कर दिया। भारत सरकार को इस दबाव के आगे झुकना पड़ा और पाकिस्तान को धन भेजना पड़ा। नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।[तथ्य वांछित]
[संपादित करें] दंगा फ़साद
बहुत से विद्वानों का मत है कि ब्रिटिश सरकार ने विभाजन की प्रक्रिया को ठीक से नहीं संभाला। चूंकि स्वतंत्रता की घोषणा पहले और विभाजन की घोषणा बाद में की गयी, देश में शांति कायम रखने की जिम्मेवारी भारत और पाकिस्तान की नयी सरकारों के सर पर आई। किसी ने यह नहीं सोचा था कि बहुत से लोग इधर से उधर जाएंगे। लोगों का विचार था कि दोनों देशों में अल्पमत संप्रदाय के लोगों के लिए सुरक्षा का इंतज़ाम किया जाएगा। लेकिन दोनों देशों की नयी सरकारों के पास हिंसा और अपराध से निबटने के लिए आवश्यक इंतज़ाम नहीं था। फलस्वरूप दंगा फ़साद हुआ और बहुत से लोगों की जाने गईं, और बहुत से लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा। अंदाज़ा लगाया जाता है कि इस दौरान लगभग 5 लाख लोग मारे गये[तथ्य वांछित], कुछ दंगों में, तो कुछ यात्रा की मुश्किलों से।
[संपादित करें] जन स्थानांतरण
विभाजन के बाद के महीनों में दोनों नये देशों के बीच विशाल जन स्थानांतरण हुआ। पाकिस्तान में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को बलात् बेघर कर दिया गया। लेकिन भारत में गांधीजी ने कांग्रेस पर दबाव डाला और सुनिश्चित किया कि मुसलमान अगर चाहें तो भारत में रह सकें। सीमा रेखाएं तय होने के बाद लगभग 1.45 करोड़ लोगों ने हिंसा के डर से सीमा पार करके बहुमत संप्रदाय के देश में शरण ली। 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।[तथ्य वांछित] इसमें से 78 प्रतिशत स्थानांतरण पश्चिम में, मुख्यतया पंजाब में हुआ।
[संपादित करें] शरणार्थी
भारत में आए शरणार्थी पश्चिम में मुख्यतः पंजाब और दिल्ली में, और पूर्व में मुख्यतः पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में बसाए गए। सिंध से आए शरणार्थी गुजरात और राजस्थान में बसे। पंजाबी बोलने वाले मुस्लिम मुख्यतः पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बसे और जल्दी ही वहाँ सम्मिलित हो गए। लेकिन उर्दू बोलने वाले मुस्लिम जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद और अन्य प्रांतों से पाकिस्तान गए उन्हें वहाँ बसने और सम्मिलित होने में बहुत कठिनाइयाँ आईं। इन शरणार्थियों को मुहाजिर का नाम दिया गया।
[संपादित करें] साहित्य और सिनेमा में भारत का विभाजन
भारत के विभाजन और उसके साथ हुए दंगे-फ़साद पर कई लेखकों ने उपन्यास और कहानियाँ लिखी हैं, जिनमें से मुख्य हैं,
- अमृता प्रीतम का पिंजर,
- खुशवंत सिंह का ट्रेन टु पाकिस्तान ,
- भीष्म साहनी का तमस, और
- सलमान रशदी का मिडनाइट्स चिल्ड्रन (आधी रात की सन्तानें)।
पिंजर को फिल्म और तमस को प्रसिद्ध दूरदर्शन धारावाहिक के रूप में रूपांतरित किया गया है। इसके अलावा गरम हवा, दीपा महता की अर्थ (ज़मीन), कमल हसन की हे राम भी भारत के विभाजन पर आधारित हैं।
[संपादित करें] बाहरी कडियाँ
[संपादित करें] यह भी देखे
[संपादित करें] संदर्भ
[संपादित करें] टीका-टिप्पणी
- ↑ TIME Essay HURRYING MIDNIGHT
- ↑ V.D. Savarkar, Samagra Savarkar Wangmaya Hindu Rasthra Darshan (Collected works of V.D.Savarkar) Vol VI, Maharashtra Prantik Hindusabha, Poona, 1963, पृष्ठ 296
- ↑ टॉमस आरगीसी, Nations, States, and Secession: Lessons from the Former Yugoslavia, मेडटरेनियन क्वॉटरली, Volume 5 Number 4 Fall 1994, पृ. 40–65, ड्यूक यूनिवर्सिटी प्रेस
[संपादित करें] ग्रन्थ और निबंधसूची
- Select Research Bibliography on the Partition of India, Compiled by Vinay Lal, Department of History, UCLA; University of California at Los Angeles list
- A select list of Indian Publications on the Partition of India (Punjab & Bengal); University of Virginia list
- South Asian History: Colonial India — University of California, Berkeley Collection of documents on colonial India, Independence, and Partition
- Indian Nationalism — Fordham University archive of relevant public-domain documents
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम | |
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