आयुर्वेद
विकिपिडिया नं
आयुर्वेद आयुयागु वेद अर्थात आयुयागु ज्ञान खः। गु शास्त्र नं आयु यागु ज्ञान बी, व हे शास्त्र आयुर्वेद खः। म्ह, इन्द्रिय सत्व, व आत्मा यागु संयोगयु नां आयु खः। प्राण नं युक्त म्हयात जीवित धाइ। आयु और शरीर का संबंध शाश्वत है। आयुर्वेद में इस सम्बन्ध में विचार किया जाता है। फलस्वरुप वह भी शाश्वत है। जिस विद्या के द्वारा आयु के सम्बन्ध में सर्वप्रकार के ज्ञातव्य तथ्यों का ज्ञान हो सके या जिस का अनुसरण करते हुए दीर्घ आशुष्य की प्राप्ति हो सके उस तंत्र को आयुर्वेद कहते हैं, आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है। यह मनुष्य के जीवित रहने की विधि तथा उसके पूर्ण विकास के उपाय बतलाता है, इसलिए आयुर्वेद अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह एक चिकित्सा पद्धति मात्र नही है, अपितु सम्पूर्ण आयु का ज्ञान है, इस आयुर्वेद में आयु के हित (पथ्य, आहार, विहार) अहित (हानिकर, आहार, विहार) रोग का निदान और व्याधियों की चिकित्सा कही गई है। हित आहार, सेवन एवं अहित आहार, त्याग करने से मनुष्य पूर्ण रुप से स्वस्थ रह सकता है। स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के चरम लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। पुरुषार्थ चतुष्टयं की प्राप्ति का मुख्य साधन शरीर है अतः उसकी सुरक्षा पर विशेष बल देते हुए आयुर्वेद कहता है कि धर्म अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति का मुख्य साधन शरीर है। सम्पूर्ण कार्यों विशेष रुप से शरीर की रक्षा करना चाहिए।
धलः |
[सम्पादन] आयुर्वेदयु न्ह्यथनेज्या व विकास
आयुर्वेद के इतिहास पर यदि अवलोकन किया जाय तो इसकी उत्पत्ति महर्षि देवता ब्रह्मा जी द्वारा माना गया है, जिन्होंने ब्रह्मसंहिता की रचना की थी । कहा जाता है कि ब्रह्मसंहिता में दस लाख श्लोक तथा एक हजार अघ्याय थे, लेकिन आधुनिक काल में यह ग्रंथ उपलब्ध नहीं है ।
आयुर्वेद के ज्ञान के आदि श्रोत वेद मानें जाते हैं । यद्यपि आयुर्वेद का वर्णन सभी चारों वेदों में किया गया है, लेकिन अथर्ववेद से अधिक साम्यता होंनें के कारण महर्षि सुश्रुत नें उपांग और महर्षि वाग्भट्ट नें उपवेद बताया है । महर्षि चरक नें भी अथर्ववेद से सबसे अधिक नजदीकी विवरण मिलनें के कारण आयुर्वेद को इसी वेद से जोडा है ।
इसी कडी में, ऋगवेद में आयुर्वेद को उपवेद की संज्ञा दी गयी है । महाभारत में भी आयुर्वेद को उपवेद कहा गया है । पुराणों में भी वर्णन प्राप्त है । बृम्हवैवर्तपुराण में आयुर्वेद को पांचवां वेद कहा गया है। वास्तव में किसी भी वैदिक साहित्य में आयुर्वेद शब्द का वर्णन नहीं मिलता, फिर भी महर्षि पणनी द्वारा रचित ग्रंथ अष्टाध्यायी में आयुर्वेद शब्द प्राप्त होता है।
भारतीय चिकित्सा विज्ञान, जिसे आयुर्वेद कहते हैं, का सम्पूर्ण वर्णन प्रमुख रूप से चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में किया गया है। अन्य संहिताओं यथा काश्यप संहिता, हरीत संहिता, में इसका वर्णन किया गया है, लेकिन ये सम्पूर्ण नहीं हैं। अष्टांग संग्रह, अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, माधव निदान इत्यादि ग्रंथों का सृजन चरक और सुश्रुत को आधार बनाकर रचित की गयीं हैं। समय के परिवर्तन के साथ साथ निदानात्मक और चिकित्सकीय अनुभवों को लेखकों नें अपने अपने दृष्टिकोणों और विचारों को अनुकूल समझ कर संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध किया ।
[सम्पादन] आयुर्वेद का उद्देश्य
संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो दुःखी होना चाहता हो। सुख की चाह प्रत्येक व्यक्ति की होती है, परन्तु सुखी जीवन उत्तम स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। स्वस्थ और सुखी रहने के लिए यह आवश्यक है कि शरीर में कोई विकार न हो और यदि विकार हो जाए तो उसे शीघ्र दूर कर दिया जाये। आयुर्वेद का मुख्य लक्ष्य व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना एवं रोगी हो जाने पर उसके विकार का प्रशमन करना है। ऋषि जानते थे कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ जीवन से है इसीलिए उन्होंने आत्मा के शुद्धिकरण के साथ शरीर की शुद्धि व स्वास्थ्य पर भी विशेष बल दिया है।
[सम्पादन] आयुर्वेद अवतरण
आयुर्वेद के अवतरण की कई गाथायें हैं :
चरक संहिता के अनुसार ब्रम्हा जी नें आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान अश्विनी कुमारों को दिया, अश्वनी कुमारों नें यह ज्ञान इन्द्र को दिया, इन्द्र नें यह ज्ञान भारदृवाज को दिया, भारदृवाज नें यह ज्ञान आत्रेय पुर्नवसु को दिया, आत्रेय पुर्नवसु नें यह ज्ञान अग्नि वेश, जतूकर्ण, भेल, पराशर, हरीत, क्षारपाणि को दिया /
सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्रम्हा जी नें आयुर्वेद का ज्ञान दक्षप्रजापति को दिया, दक्ष प्रजापति नें यह ज्ञान अश्वनीं कुमार को दिया, अश्वनी कुमार से यह ज्ञान धन्वन्तरि को दिया, धन्वन्तरि नें यह ज्ञान औपधेनव और वैतरण और औरभ और पौष्कलावत और करवीर्य और गोपुर रक्षित और सुश्रुत को दिया ।
सृष्टि के प्रणेता ब्रह्मा द्वारा एक लाख सूत्रों में आयुर्वेद का वर्णन किया गया और इस ज्ञान को दक्ष प्रजापति द्वारा ग्रहण किया गया तत्पश्चात् दक्ष प्रजापति से यह ज्ञान सूर्यपुत्र अश्विन कुमारों को और अश्विन कुमारों से स्वर्गाधिपति इन्द्र को प्राप्त हुआ। आयुर्वेद के इतिहास से यह ज्ञात होता है कि इन्द्र के द्वारा यह ज्ञान पुनर्वसु आत्रेय को यह प्राप्त हुआ। शल्य शास्त्र के रुप में यह ज्ञान आदि धन्वन्तरि को प्राप्त हुआ। और स्त्री एवं बाल चिकित्सा के रुप में यह ज्ञान इन्द्र से महर्षि कश्यप को दिया गया। उपरोक्त वर्णन से यह ज्ञात होता है कि भारत में प्रारंभ से ही चिकित्सा ज्ञान, काय चिकित्सा, शल्यचिकित्सा, स्त्री एवं बालरोग चिकित्सा रुप में विख्यात हुआ था। उपरोक्त इस विशेष कथन से यह बात भी प्रमाणित होती है कि चिकित्सा कार्य को करने के लिए आज की राज आज्ञा के अनुरुप चिकित्सा कार्य करने के लिए स्वर्गाधिपति इन्द्र से अनुमति प्राप्त करनी आवश्यक होती थी।
[सम्पादन] आयुर्वेदयु सिद्धान्त=
थुकिगु सिद्धान्त थ्व कथलं दु
- -त्रिदोष
- -त्रिदोषोंयु छगु छगु यु ५गु ५गु भेद
- -सप्त धातुयें
- -मल
- -ओज
- -अग्नि
- -प्रकृति इत्यादि इत्यादि
[सम्पादन] त्रिदोष
मुख्तया यह तीन होते हैं जिन्हें वात, पित्त और कफ कहते हैं / ये एकल दोष कहे जाते हैं /
जब वात और पित्त अथवा पित्त और कफ अथवा वात और कफ ये दो दोष मिल जाते हैं , तब इस मिश्रण को द्विदोषज कहते हैं /
जब वात, पित्त और कफ ये तीनों दोष एक साथ मिल जाते हैं , तब इस मिश्रण को त्रिदोषज या सन्निपातज कहते हैं /
[सम्पादन] त्रिदोषों के प्रत्येक के पांच पांच भेद
हरेक दोष के पांच भेद आयुर्वेद के मनीषियों नें निर्धारित किये हैं /
वात दोष के पांच भेद (1) समान वात (2) व्यान वात (3) उदान वात (4) प्राण वात (5) अपान वात हैं / वात दोष को ‘’ वायु दोष ‘’ भी कहते हैं /
पित्त दोष के पांच भेद होते हैं / 1- पाचक पित्त 2- रंजक पित्त 3- भ्राजक पित्त 4- लोचक पित्त 5- साधक पित्त
इसी प्रकार कफ दोष के पांच भेद होते हैं / 1- श्लेष्मन कफ 2- स्नेहन कफ 3- रसन कफ 4- अवलम्बन कफ 5- क्लेदन कफ
आधुनिक आयुर्वेदज्ञ वातादि दोषों के भेदों को फिजियोलांजिकल बेसिस आंफ डिसीजेज के समकक्ष मानते हें / कुछ अन्य विदृवान इसे असामान्य एनाबालिजम की तरह से समझते हैं /
[सम्पादन] सप्त धातु
आयुर्वेद के मौलिक सिदधान्तों में सप्त धातुओं का बहुत महत्व है / इनसे शरीर का धारण होता है, इसी कारण से धातु कहा जाता है / ये संख्या में सात होती हैं /
- रस धातु
- 2- रक्त धातु
- 3- मांस धातु
- 4- मेद धातु
- 5- अस्थि धातु
- 6- मज्जा धातु
- 7- शुक्र धातु
सप्त धातुयें वातादि दोषों से कुपित होंतीं हैं / जिस दोष की कमी या अधिकता होती है, सप्त धातुयें तदनुसार रोग अथवा शारीरिक विकृति उत्पन्न करती हैं /
आधुनिक आयुर्वेदज्ञ सप्त धातुओं को पैथोलांजिकल बेसिस आंफ डिसीजेज के समतुल्य मानते हैं /
[सम्पादन] मल
मल तीन प्रकार के होतें हैं / 1- पुरीष 2- मूत्र 3- स्वेद
[सम्पादन] आयुर्वेद में नयी खोजें
आयुर्वेद लगभग, 5000 वर्ष पुराना चिकित्सा विज्ञान है. इसे भारतवर्ष के विद्वानों नें भारत की जलवायु, भौगालिक परिस्थितियों,भारतीय दर्शन, भारतीय ज्ञान-विज्ञान के द्ष्टकोण को घ्यान में रखते हुये विकसित किया.
वतर्मान में स्वतंत्रता के पश्चात आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान नें बहुत प्रगति की है.
[सम्पादन] इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राम (ई.टी.जी.)-नाडी-विज्ञान का आधुनिक स्वरूप-आयुर्वेद के सिद्धान्तों की साक्ष्य आधारित प्रस्तुति
सम्पूर्ण आयुर्वेद त्रिदोष के सिद्धान्तों पर आधरित है. त्रिदोष सिद़धान्त यथा वात, पित्त, कफ तीन दोष शरीर में रोग पैदा करते हैं. इन दोषों का ज्ञान करनें का एकमात्र उपाय नाडी परीक्षण है, जिसे प्राप्त करना बहुत आसान कार्य नही है / नाडी परीक्षण के परिणामों को देखा नहीं जा सकता है कि शरीर में प्रत्येक दोष का कितना असर है.
एक भारतीय, कानपुर शहर, उत्तर प्रदेश राज्य निवासी, आयुर्वेदिक चिकित्सक डा0 देश बन्धु बाजपेयी ने ऐसी तकनीक का विकास किया है , जिससे आयुर्वेद के मौलिक सिद़धांतों का शरीर में कितना प्रभाव और असर है, यह सब ज्ञात किया जा सकता है.
ई0टी0जी0 तकनीक से आयुर्वेद के निदानात्मक दृष्टिकोणों को निम्न स्वरूपों में प्राप्त करते हैं.
- 1-त्रिदोष यथा वात,पित्त,कफ का ज्ञान
- 2-त्रिदोषों के प्रत्येक के पांच पांच भेदों का ज्ञान,
- 3-सप्त धातुओं का आंकलन, दोष आधारित सप्तधातुयें
- 4-मलों का आंकलन यथा पुरीष, मूत्र, स्वेद
- 5-अग्नि बल, ओज, सम्पूर्ण ओज आदि का आंकलन
ई0टी0जी0 मशीन, कम्प्यूटर साफ़टवेयर की मदद से आयुर्वेद के मौलिक सिदधान्तों का आंकलन करते हैं. इस तकनीक की मदद लेकर आयुर्वेद के विकास की असीम सम्भावनायें हैं.
[सम्पादन] सन्दर्भ ग्रंथ
- चरक संहिता
- सुश्रुत संहिता
- वाग्भट्ट
[सम्पादन] स्वयादिसं
[सम्पादन] पिनेयागु स्वापूतः
- :आयुर्वेद,पर्यायी व पुरक औषध पद्धती --Indian Alternative Medicine
- इलेक्ट्रोत्रिदोषग्राफी तकनीक [1]
|
---|