21 सितम्बर
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शॉल शाप ’नन्दलाल स्टोर्स’ का 60 वें वर्ष में प्रवेश
इन्दौर। इन्दौर की ऐतिहासिक इमारत ’राजवाड़ा’ के निकट स्थित वूलन शालों के लिये प्रसिद्ध प्रतिष्ठान ’नन्दलाल स्टोर्स’ अपने सफ़ल व सार्थक 59 वर्ष पूर्ण कर 60 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। संस्थान के प्रमुख श्री धनराज वाधवानी ने बताया कि ’नन्दलाल स्टोर्स’ की स्थपना वर्ष 1948 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ दिन स्व. श्री नन्दलाल वाधवानी ने की थी। वूलन शॉल के व्यापार में अग्रणी ’नन्दलाल स्टोर्स’ की देश में अपनी साख है। श्री वाधवानी अपनी सफ़लता का श्रेय ग्राहकों के विश्वास एवं ग्राहकों की सन्तुष्टि को देते हैं। ’नन्दलाल स्टोर्स’ पर समस्त उत्तरी भारत की शॉलें प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। संस्थान काश्मीरी, हिमाचल व पंजाब आदि की कढ़ाई-बुनावट वाली, प्लेन पोत, टाई एण्ड डाई, बार्डर–पल्लू, बूटी, जाल-बार्डर वाली आदि आकर्षक रंगों व कलात्मक डिज़ाईनों में सभी प्रकार की, रोजमर्रा के पहनने योग्य, विशेष व शुभ अवसरों पर पहनने, घर में या सफ़र में पहनने–ओढ़ने लायक, सगाई, शादी-विवाह, बिदाई, स्वागत व सम्मान समारोह आदि अवसरों पर भेंट में देने योग्य, चिरस्थाई यादगार बन जाने वाली विभिन्न किस्म की लेडिज़ व जेंट्स शालों के व्यवसाय में संलग्न है। ’नन्दलाल स्टोर्स’ का स्लोगन ही है- ’शालें ही शालें, दुकान ही शालों की’ । श्री वाधवानी बताते हैं कि परम्परागत, लाजवाब भारतीय शालों का विश्व के किसी अन्य देश मे कोई जवाब नहीं है। इसी प्रकार विभिन्न विदेशी ब्राण्डेड मिलों द्वारा शॉल बनाने के भरपूर प्रयासों के बावजूद, इस हस्त शिल्प के मुकाबले किसी को भी विशेष सफ़लता नहीं मिली है। श्री वाधवानी के अनुसाअर ’नन्दलाल स्टोर्स’ को शॉल की दुकान मात्र कहना नाकाफ़ी होगा, वस्तुतः यह शॉल रूपी कलाकृतियों का संग्रहालय या कहना चाहिये कि इनसाक्लोपीडिया है। यहां की शॉलें सिर्फ़ शॉलें नहीं होकर लुप्तप्रयः हो रहे कारीगरों द्वारा सॄजन की हुई, करीने से सजाई हुई, कल्पनाएं संजोई हुई, सम्मान-सत्कार, स्मॄतियों, सद्भावनाओं व स्नेह की निरंतर प्रतीक बन जाने वाली कलाकृतियां हैं। श्री धनराज वाधवानी के अनुसार शालों के चयन में उनके बुजुर्गों का, सदियों का, परखने का अनमोल अनुभव उन्हें विरासत में मिला है। कॄत्रिमता से दूर, वूलन शालों का निर्माण प्राकृतिक रा-मटेरियल से होने के कारण प्राकृतिक अहसास करवाता है। देश के अनेक ठण्डे क्षेत्रों में घर-घर में बनारसी साड़ियों की तरह कढ़ाई–बुनाई से ये कृतियां बनती हैं। जहां तक काश्मीर का सवाल है, हालात खराब होने के बावजूद वहां शॉल की कारीगरी में कोई कमी नहीं आई है बल्कि पर्यटन में अवरोध के कारण इस कला की ओर विशेष अतिरिक्त ध्यान दिया जा रहा है। शालों के कपड़े, कढ़ाई–बुनाई की किस्मों व नामों का कोई अंत नहीं है। नित नये नाम रखे जाते हैं, कला की नई सृष्टि होती रहती है। शालों का फ़ैशन अनंतकाल तक चलता रहेगा, सैकड़ों वर्ष पूर्व प्रचलित शॉलें भी हमेशा फ़ैशन में बनी रहेंगी। जो सुख परमपरागत शालों के औढ़ने व भेंट करने में मिलता है वह अमूल्य है और अन्य वस्तुओं से मिलना दुश्वार है, अतः शॉल का कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता है। वूलन शॉल व्यवसाय वैसे तो सीजनल है किन्तु ’नन्दलाल स्टोर्स’ बारहों महीनें इसमे संलग्न रहता है। आशय यह है कि ’नन्दलाल स्टोर्स’ शॉल का पर्यायवाची बन गया है। वर्षगांठ के अवसर पर श्री धनराज वाधवानी ने समस्त स्नेहियों एवं शुभचिंतकों का ह्रदय से आभार माना है।