रुपए का इतिहास
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भारत की प्राचीन सभ्यताएँ विश्व कि उन प्रथम सभ्यताओ मे से है जहाँ सिक्को प्रचलन शुरू हुआ। लगभग ६वी सदी ईसा पूर्व मे। रुपए शब्द का अर्थ, शब्द रूपा से जोडा जा सकता है जिसका अर्थ होता है चाँदी। संस्कृत मे रूप्यकम् का अर्थ है चाँदी का सिक्का। रूपया शब्द सन 1540 - 1545 के दरमयान शेरशाह सूरी के द्वारा जारी किए गए चाँदी के सिक्को के लिए उपयोग मे लाया गया। मूल रूपया चाँदी का सिक्का होता था, जिसका वजन 11.34 ग्राम था। यह सिक्का ब्रिटिश भारत के शासन काल मे भी उपयोग मे लाया जाता रहा।
रुपयो के कागज के नोटो को सबसे पहले जारी करने वालो मे से थे बैंक ऑफ हिन्दूस्तान (1770-1832), द जनरल बैंक ऑफ बंगाल एंड बिहार (1773-75, वारेन हास्टिग्स द्वारा स्थापित) और द बंगाल बैंक(1784-91)।
ऐतिहासिक तौर पे रूपया चाँदी पे आधारित मुद्गा थी। १९वी शताब्दी मे इसके विपरीत परिणाम हुए, जब यूरोप और अमेरीका मे भारी पैमाने मे चाँदी की खोज हुई। उस समय की मजबूत अर्थव्यवस्थाए सोने पे आधारित थी। चाँदी की खोज से चाँदी और सोने के आपेक्षित मुल्यो मे भारी अंतर आया। अचानक ही भारत की मुद्रा विश्व बाजार मे उतना नही खरीद सकती थी जितना पहले। इसे "रुपए की गिरावट" के नाम से भी जाना जाता है।
शुरूआत मे एक रूपए को 16 आनो, 64 पैसो या 192 पाई मे बाँटा गया। यानी 1 आना 16 पैसो या 12 पाई मे विभाजित था। दशमलव प्रणाली के अनुसार विभाजन हुआ 1869 मे श्रीलंका मे, 1957 मे भारत मे और 1961 मे पाकिस्तान मे।
[संपादित करें] कागज के नोटो की शुरूआत
शुरूआत मे बैंक ऑफ बंगाल द्वारा जारी किए गए कागज के नोटो पे केवल एक तरफ ही छपा होता था। इसमे सोने की एक मोहर बनी थी और यह १००, २५०, ५०० आदी वर्गो मे थे। बाद के नोट मे एक बेलबूटा बना था जो एक महिला आकृति, व्यापार का मानवीकरण दर्शाता था। यह नोट दोनो ओर छपे होते थे, तीन लिपीओ उर्दू, बंगाली और देवनागरी मे यह छपे होते थे, जिसमे पीछे की तरफ बैंक की छाप होती थी। १८०० सदी के अंत तक नोटो के मूलभाव ब्रीटानी हो गए और जाली बनने से रोकने के लिए उनमे अन्य कई लक्षण जोडे गए।