डेंगू
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डेंगू वायरस | ||||||||
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इलैक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा डेंगू वायरस का माइक्रोग्राफ चित्र
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वायरस वर्गीकरण | ||||||||
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डेंगू ज्वर वर्गीकरण एवं बाह्य साधन |
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ICD-10 | A90. | |
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ICD-9 | 061 | |
DiseasesDB | 3564 | |
MedlinePlus | 001374 | |
eMedicine | med/528 | |
MeSH | C02.782.417.214 |
डेंगू एक बीमारी हैं जो एडीज इजिप्टी मच्छरों के काटने से होता हैं. इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के उभरे चकत्तों से खून रिसता हैं.
अनुक्रम |
[संपादित करें] कारण
इस रोग का कारण विषाणु मच्छरों द्वारा मानव शरीर में पहुचना हैं.डेंगू एक बीमारी हैं जो एडीज इजिप्टी मच्छरों के काटने से होता हैं. इस रोग में तेज बुखार के साथ शरीर के उभरे चकत्तों से खून रिसता हैं.डेंगू बुखार तथा डेंगूहैमरेज ज्वर बहुत तीव्र प्रकार के मांसपेशीय तथा रक्त से जुडे रोग है ये उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र मे तथा अफ्रीका मे मिलते है,ये चार प्रकार के निकटता से जुडे विषाणु से होते है,जो फ्लैविवायरस गण तथा फ्लेविविराइड परिवार के होते है,बहुधा उन्हीं क्षेत्रों मे फैलता है जिनमे मलेरिया फैलता है,किंतु मलेरिया से पृथकता यह है कि यह शहरी क्षेत्र मे फैलता है जिनमे सिंगापुर,ताइवान, इण्डोनेशिया,फिलीपींस,भारत तथा ब्राजील भी शामिल है ,प्रत्येक विषाणु इतना भिन्न होता है किसी एक से संक्रमण के बाद भी अन्य के विरूद्ध सुरक्षा नहीं मिलती है,तथा जहाँ यह महामारी रूप मे फैलता है वहाँ एक समय मे अनेक प्रकार के विषाणु सक्रिय हो सकते है ,डेंगू मानव मे एडिस एजेप्टी नामक मच्छर फैलाता है [कभी कभी एडिस एलबोपिकटस से भी]यह मच्छर दिन मे काटता है
[संपादित करें] लक्षण
यह रोग अचानक तीव्र ज्वर के साथ शुरू होता है,जिसके साथ साथ तेज सिर दर्द होताहै ,मांसपेशियों तथा जोडों मे भयानक दर्द होता है जिसके चलते ही इसे हड्डी तोड बुखार कहते है इसके अलावा शरीर पर लाल चकते भी बन जाते है जो सबसे पहले पैरों पे फिर छाती पर तथा कभी कभी सारे शरीर पर फैल जाते है इसके अलावा पेट खराब हो जाना,उसमे दर्द होना,कै होना,दस्त लगना,ब्लेडर की समस्या,निरंतर चक्कर आना,भूख ना लगना भी लक्षण रूप मे ज्ञात है
कुछ मामलों मे लक्षण हल्के होते है जैसे चकते ना पडना, जिसके चलते इसे इंफ्लूएंजा का प्रकोप मान लिया जाता है या कोई अन्य विषाणु संक्रमण ,यदि कोई व्यक्ति प्रभावित क्षेत्र से आया हो और इसे नवीन क्षेत्र मे ले गया हो तो बीमारी की पहचान ही नहीं हो पाती है रोगी यह रोग केवल मच्छर या रक्त के द्वारा दूसरे को दे सकता है वह भी केवल तब जब वह रोग ग्रस्त हो
शास्त्रीय तौर पर ये ज्वर 6-7 दिन रहता है ज्वर समाप्ति के समय फिर से कुछ समय हेतु ज्वर आता है ,जब तक रोगी का तापक्रम सामान्य नहीं होता है तब तक उसके रक्त मे प्लेटलेटस की संख्या कम रहती है
जब डेंगूहैमरेज ज्वर होता है तो ज्वर बहुत तेज हो जाता है रक्तस्त्राव शुरू हो जाता है ,रक्त की कमी हो जाती है,थ्रोम्बोसाटोपेनिया हो जाता है , कुछ मामलों डेंगू प्रघात की दशा [डेंगू शोक सिंड्रोम] आ जाती है जिसमे मृत्यु दर बहुत ऊँची होती है
[संपादित करें] पहचान
डेन्गू की पहचान प्राय इन लक्षणों के आधार पर डाक्टर करते है,बहुत ऊँचा ज्वर जिसका कोई अन्य स्थानीय कारण समझ नहीं आये, सारे शरीर पे चकते पड जाना ,रक्त मे प्लेटलेटस की संख्या कम हो जाना
विश्व स्वास्थय संगठन ने डेंगू हैमरेज ज्वर की परिभाषा 1975 मे दी थी,इसके चार मापक है जो अवश्य पूरे होने चाहिए
1. ज्वर,ब्लेडर की समस्या,लगातार सिरदर्द,चक्कर आना,भूख ना लगना
2.रक्त स्त्राव की प्रवृति[टोर्नक्विट परीक्षण सकारात्मक आना,खुद ब खुद छिल जाना,नाक,कान से, टीका लगाने के स्थान से खून रिसना,खूनी द्स्त लगना और खून की उल्टी आना]
3. खून मे प्लेटलेटस की संख्या कम होना[प्रतिघन सेमी रक्त मे <100,000 से कम होना]
4. प्लासमा रिसाव होने के साक्ष्य मिलना [हेमोट्रोक्रिट मे 20% से ज्यादा वृद्धि या हीमाट्रोक्रिट मे 20% से ज्यादा गिरावट ]
डेंगू शोक सिन्ड्रोम को परिभाषित किया गया है
1. कमजोर नब्ज चलना
2. नब्ज का दबाव कम होना [20 मिमी एच.जी दबाव से कम ]
3.ठण्ड,व्यग्रता
सीरोलोजी तथा पोलिमर चेन रिक्शन के अध्ययन उपलब्ध है जिनके आधार पर डेंगू की पुष्टि की जा सकती है यदि चिकित्सक लक्षण पाकर इसका संदेह व्यक्त करे
[संपादित करें] इलाज
उपचार का मुख्य तरीका सहायक चिकित्सा देना ही है ,मुख से तरल देते रहना क्योंकि अन्यथा जल की कमी हो सकती है ,नसों से भी तरल दिया जाता है ,यदि रक्त मे प्लेटलेटस की संख्या बहुत कम हो जाये या रक्त स्त्राव शुरू हो जाये तो रक्त चढाना भी पडेगा, आंतो मे रक्तस्त्राव होना जिसे मेलना की मौजूदगी से पहचान सकते है मे भी खून चढाना पड सकता है इस संक्रमण मे एस्प्रीन या अन्य गैर स्टेरोईड दवाएँ लेने से रक्तस्त्राव बढ जाता है इसके स्थान पर संदिग्ध रोगियों को पेरासिटामोल देनी चाहिए
[संपादित करें] उभरते हुए उपचार
नये अध्ययन बताते है कि माइसोफेनोलिक एसिड तथा रिबाविरिन का प्रयोग करने से डेंगू के विषाणु की वृद्धि रूक जाती है,यदि ये दवायें दी जाये तो विषाणु का आर.एन.ए. दोषपूर्ण बन जाता है
[संपादित करें] महामारी का रूप
डॆंगू का प्रथम महामारी रूपेण हमला एक साथ एशिया,अफ्रीका,उत्तरी अमेरिका मे एक साथ 1780 के लगभग हुआ था , इस रोग को 1779 मे पहचाना तथा नाम दिया गया था,1950 के दशक मे यह दक्षिण पूर्व एशिया यह निरंतर महामारी रूप मे फैलना शुरू हुआ तथा 1975 तक डेंगू हेमरेज ज्वर इन देशों मे बाल मृत्यु का प्रधान कारण बन गया है 1990 के दशक तक डेंगू मलेरिया के पश्चात मच्छरों द्वारा फैलने वाला दूसरा सबसे बडा रोग बन गया जिससे साल भर मे 40 मिलियन लोग संक्रमित होते है वहीं डेंगू हैमरेज ज्वर के भी हजारों मामले सामने आते है
फरवरी 2002 मे ही जब रियो-डी-जेनेरो मे डेंगू के प्रसार हुआ तो 10 लाख लोग इसकी चपेट मे आ गये थे जिससे 16 लोग मर गये
मार्च 2008 तक भी इस शहर मे दशा बहुत अच्छी नहीं थी केवल 3 मास मे 23,555 मामले और 30 मौते हुई थी ,लगभग हर पांच से छह साल मे डेंगू का बडा प्रकोप होता है ऐसा इस लिये होता है कि वार्षिक चक्र जो इस रोग के आते है वो रोगियों को कुछ समय हेतु प्रतिरोध क्षमता दे देता है जैसे कि चिकनगुनिया के मामलों मे होता है,जब यह प्रतिरोध क्षमता समाप्त हो जाती है तो लोग रोग के प्रति फिर से संवेदनशील हो जाते है ,फिर डेंगू के चार प्रकार के वायरस होते है,इसके अलावा नये लोग जनसंख्या मे जन्म या प्रवास के जरिए जुड जाते है
इस बात के पर्याप्त प्रमाण है [1970 के बाद से] एस.बी.हेल्सटीड ने एक अध्ययन द्वारा सिद्ध कर दिया है कि डेंगू हैमरेज ज्वर उन रोगियों को ज्यादा होता है जो द्वितीयक संक्रमण से ग्रस्त हुए हो जो कि प्राथमिक् संक्रमण से भिन्न प्रकार के वायरस से होता है . यधपि इस धारणा को ठीक से समझा नहीं जा सका है केवल कुछ माडल है जो इसके बारे मे मत व्यक्त करते है ,इस दशा को परमसंक्रमण की दशा कहते है
सिंगापुर मे प्रतिवर्ष इस रोग के 4000-5000 मामले सामने आते है यधपि आम धारणा यह है कि बहुत से मामले छुपे रह जाते है
[संपादित करें] नियंत्रण और बचाव
यह उपाय माने गये है
[संपादित करें] टीके का विकास
इस समय कोई वैक्सीन बाजार मे मौजूद नहीं है यधपि थाईलैण्ड मे प्रयोग काफी हद तक सफल रहे है जब भी वैक्सीन बाजार
मे आयेगी इस आलेख मे सूचना डाल दी जायेगी
[संपादित करें] मच्छरो पे नियंत्रण
डेंगू से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका मच्छरों की आबादी पे काबू करना है इस हेतु या तो लार्वा पे नियंत्रण करना होता है या वयस्क मच्छरों की आबादी पर। एडिस मच्छर कृत्रिम जल संग्रह पात्रों मे जनन करते है जैसे टायर,बोतलें,कूलर,गुलदस्ते इन जलपात्रों को बारबार खाली करना चाहिए यही सबसे बेहतर तरीका लार्वा नियंत्रण का माना जाता है
वयस्क मच्छरों को काबू मे करने हेतु कीटनाशक धुंआ किसी सीमा तक प्रभावी हो सकते है ,मच्छरों को काटने से रोक देना भी एक तरीका है किंतु इस प्रजाति के मच्छर दिन मे काटते है जिससे मामला गंभीर बन जाता है ,एक नया तरीका मेसोसाक्लोपस नामक जलीय कीट जो लार्वा भक्षी है को रूके जल मे डाल देना है जैसे कि गम्बूशिया मछली मलेरिया के विरूद्ध प्रभावी उपाय है ,यह बेहद प्रभावी,सस्ता तथा पर्यावरण मित्र विधि है इसके विरूद्ध मच्छर कभी प्रतिरोधक क्षमता हासिल नहीं कर सकते है किंतु इस हेतु सामुदायिक भागीदारी सक्रिय रूप से चाहिए
[संपादित करें] व्यक्तिगत सुरक्षा
मच्छरदानी, रिपलेंट ,शरीर को ढक के रखना,तथा प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहना
[संपादित करें] संभावित विषाणु रोधी उपाय
पीत ज्वर की वैकसीन एक संबन्धित फ्लैवीवायरस के विरूद्ध है उसे डेंगू के विरूद्ध परिवर्तित रूप में प्रयोग करने की सलाह दी जाती है किंतु इस सम्बन्ध मे कोई विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है अर्जेन्टीना के एक वैज्ञानिक समूह ने 2006 मे विषाणु के प्रजनन तरीके को खोज निकाला है जिसके चलते आशा की जाती है कि उसके विरूद्ध प्रभावी औषधि खोज निकाली जायेगी
[संपादित करें] हाल के प्रादुर्भाव
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[संपादित करें] अमेरिका मे
[संपादित करें] एशिया पैसेफिक
- ऑस्ट्रेलिया: 2006 मार्च 15, 2 पक्के मामले
- चीन: सितंबर 2006, 70 मामले [१]
- कुक द्वीपसमूह: [२](October 2006 – January 2007) 460 cases.
- भारत: 2006 सितंबर, 400 से अधिक मामले, 22 मृत्यु नई दिल्ली में ही।[३] By October 7, 2006, reports were of 3,331 cases of the mosquito-borne virus and a death toll of 49.[४]
- इंडोनेशिया: 2004 80,000 संक्रमित 800 मृत्यु
- मलेशिया: जनवरी 2005 33,203 मामले
- पाकिस्तान: 2006 में 3,230 मामले, 50 मृत्यु
- फिलिपीँस: [५](January – August 2006) 13,468 cases with 167 dead.
- Singapore: 2007 more than 4029 cases, 8 deaths at 29 September 2005 at least 13 deaths. 2004 9,460 cases. 2003, 4,788 cases.
- Thailand: May 2005 , 7,200 infected. At least 12 dead.
[संपादित करें] इतिहास
डेंगू शब्द की उत्तपत्ति स्पष्ट नहीं है,संभवत यह स्वाहीली भाषा से लिया गया है वहाँ इसे का डिंगो पेपो कहते है जो किसी बुरी आत्मा के प्रभाव से होता है,इसके अलावा इसका अर्थ हड्डी तोड बुखार भी माना जाता है वैसे भी भीषण अस्थि पीडा इसका सामान्य लक्षण माना जाता है इतिहास में डेन्गू के अनेक मामले आते रहे है पहली बार निश्चित पहचान बेंजामिन रश ने 1789 मे की उन्होंने ही इसे हड्डी तोड बुखार नाम दिया था ,बीसवी सदी मे जा कर ही पता लगा कि यह रोग मच्छरों से फैलता है