ज्योतिष
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ज्योतिष नक्षत्रों के अध्ययन का शास्त्र है। प्राचीन काल से ही भारत में नक्षत्रों एवं ग्रहों की गतियों एवं स्थितियों का अध्ययन समय की सही गणना करने के उददेश्य से किया जाता था। धार्मिक अनुष्ठानों जैसे यज्ञ इत्यादि के लिए सही समय का होना अत्यधिक आवश्यक समझा जाता था। इस उददेश्य की प्राप्ति के लिए तात्कालीन चिंतकों ने इस विधा में उल्लेखनीय महारत हासिल की जो कि उस समय अन्यत्र देखने में नही मिलता था। परंतु बाद में इस का उपयोग काल्पनिक रूप से भविष्यवाणियां करने के लिए होने लगा जो कि पूर्णतया अंधविश्वास पर आधारित थीं और जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था । अंतत यह विषय दो भागों में बंट गया -- एक ज्योतिष विज्ञान अथवा एस्ट्रानमी, दूसरा फलतज्योतिष अथवा एस्ट्रालजी। ऐस्ट्रोनोमी अथवा ज्योतिष विज्ञान अब भी विज्ञान (गणित)की शाखा के रूप में स्थापित है और इसके द्वारा गणितीय आघार पर ग्रहों और सौर मंडल में घटने वाली घटनाओं का आकलन किया जाता है जो कि अब कम्पयूटरों की मदद से अधिक शुध्दता के साथ किया जाता है। फलित ज्योतिष आज भी व्यापक रुप से भविष्यवाणी करने के लिए प्रचलित है। फ़लित ज्योतिष के द्वारा भूत काल में घटने वाली घटनायें,वर्तमान मे चल रही घटनायें,और भविष्य में जो घटनायें घटेंगी,उनका देश,काल,और परिस्थिति के अनुसार कठन किया जाता है। जो लोग देश,काल,परिस्थति को समझते हैं,और उसका समायोजन करने के बाद कथन करने में पूर्ण हैं,वे ही ज्योतिषी कहे जाते हैं,केवल कुछ सिद्धान्तों के आधार पर हर किसी के प्रति कथन करना और निजी स्वार्थ के लिये जिसके प्रति कथन किया जाता है,उसे अच्छा बुरा जो भी उसके जीवन के लिये है न कथित करके केवल उसके लिये बुरी बातों का कथन कर डरा कर धन ऐंठने का उपक्रम रचने वाले लोगों ने इसे झूठा साबित करने की कोई कसर बाकी नहीं छोडी है.
[संपादित करें] भारतीय ज्योतिष सिद्धान्त
भारतीय ज्योतिष सिद्धान्त ने विश्व विज्ञान पर बहुत प्रभाव डाला है। नारद, याज्ञवल्क्य, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, माधव, नीलकण्ठ सोमयाजि,पाराशर,कल्याण वर्मा, महर्षि जैमिनि, गुरु क.स.कृष्णमूर्ति जैसे महान ज्योतिषविद् भारत में हुए। वर्तमान में कंप्यूटर व कृष्णमूर्ति पद्धति की मदद से सटीक गणनाऐं की जा सकती हैं, इसके बड़े ही रोचक परिणाम सामने आए हैं।
गत्यात्मक ज्योतिष [भारत के बहुत सारे लोगों को शायद इस बात का ज्ञान भी न हो कि विगत कुछ वर्षों में उनके अपने देश में ज्योतिष की एक नई शाखा का विकास हुआ है , जिसके आधार पर वैज्ञानिक ढंग से की जानेवाली सटीक तिथियुक्त भविष्यवाणी जिज्ञासु बुfद्धजीवी वर्ग के मध्य चर्चा का विषय बनीं हुई है। सबसे पहले दिल्ली से प्रकाfशत होनेवाली पत्रिका `बाबाजी´ के अंग्रजी और हिन्दी दोनो के ही 1994-1995-1996 के विभिन्न अंकों तथा ज्योतिष धाम के कई अंकों में `गत्यात्मक ज्योतिष´(GATYATMAK JYOTISH) को ज्योतिष के बुfद्धजीवी वर्ग के सम्मुख रखा गया था। जनसामान्य की जिज्ञासा को देखते हुए 1997 में दिल्ली के एक प्रकाशक `अजय बुक सर्विस´ के द्वारा इसपर आधारित पुस्तक `गत्यात्मक दशा पद्धति : ग्रहों का प्रभाव´(GATYATMAK DASHA PADDHATI) के पहले परिचय के रुप में पाठकों को पेश की गयी। इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखते हुए रॉची कॉलेज के भूतपूर्व प्राचार्य डॉ विश्वंभर नाथ पांडेयजी ने `गत्यात्मक दशा पद्धति की प्रशंसा की और उसके शीघ्र ही देश-विदेश में चर्चित होने की कामना करते हुए हमें जो आशीर्वचन दिया था , वह इस पुस्तक के प्रथम और द्वितीय संस्करण के प्रकाfशत होते ही पूर्ण होता दिखाई पड़ा। इस पुस्तक की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि शीघ्र ही 1999 में इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण प्रकाfशत करवाना पड़ा।
पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात् हर जगह `गत्यात्मक ज्योतिष´ चर्चा का विषय बना रहा। कादfम्बनी पत्रिका के नवम्बर 1999 के अंक में श्री महेन्द्र महर्षि जी के द्वारा इस सिद्धांत को प्रस्तुत किया गया। जैन टी वी के प्रिया गोल्ड यूचर प्रोग्राम में भी इस पद्धति की चर्चा-परिचर्चा हुई। दिल्ली के बहुत से समाचार पत्रों में भी इस पद्धति पर आधारित लेख प्रकाfशत होते रहें। रॉची दूरदशZन , रॉची द्वारा भी पिछले वर्ष श्री विद्यासागर महथा जी से इंटरव्यू लेते हुए इस सिद्धांत की जानकारी जनसामान्य को दी गयी।
[गत्यात्मक ज्योतिष] http://gatyatmakjyotish.wordpress.com/