आज़ाद हिन्द फ़ौज
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन १९४२ में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया गया। इसका गठन रासबिहारी बोस ने जापान की सहायता से टोकियो में की।
आरम्भ में इसमें उन भारतीय सैनिकों को लिया गया था जो जापान द्वारा युद्ध-बन्दी बना लिये गये थे। बाद में इसमें बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भर्ती किये गये। एक वर्ष के भीतर ही सन १९४२ के दिसम्बर में आजाद हिन्द फौज लगभग समाप्त हो गयी। सन १९४३ में सुभाष चन्द्र बोस ने इसे पुनर्जीवित किया और इसकी बागडोर संभाली। नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रितानी और कामनवेल्थ सेना के साथ बर्मा, इम्फाल एवं कोहिमा में लोहा लिया ।
जून 1943 में टोकियो रेडियो से सुभाष बोस ने घोषणा की कि अंग्रेजों से यह आशा करना व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे. हमें स्वयं भारत के भीतर व बाहर से भी स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करना होगा. 21 अक्टूबर 1943 के सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सवोüच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी. जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये. सुभाष उन द्वीपें पर गये और नामकरण किया. अंडमान का शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप 30 दिसंबर 1943 के इन द्वीपों पर स्वतंत्र भारत का ध्वज फहरा दिया गया.
4 फरवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया गया. 22 सितंबर 1944 को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाष बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा `हमरी मातृभूमि स्वतंत्रता की खोज में है. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा. यह स्वतं˜य देवी की मांग है.´ किंतु दुर्भाग्यवश युद्ध का पासा पलटा. जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े. ऐसे में सुभाष बोस को टोकियों की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुघüटना में उनका निधन हो गया. यद्यपि उनका सैनिक अभियान असफल हो गया, किंतु इस असफलता में भी उनकी जीत छिपी थी. नि:संदेह सुभाष बोस उग्र राष्ट्रवादी थे. उनके मन में फासीवाद अधिनायकों के सबल तरीकों के प्रति भावनात्मक झुकाव भी था और वे भारत की शीघ्रातिशीघ्र स्वतंत्रता हेतु हिंसात्मक उपायों में भी आस्था रखते थे. इसीलिये उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया.
अनुक्रम |
[संपादित करें] उदय
[संपादित करें] प्रथम आज़ाद हिंद फौज
[संपादित करें] दिसंबर 1942- फरवरी 1943
[संपादित करें] दूसरी बार आज़ाद हिंद फौज का उत्थान
[संपादित करें] आज़ाद हिंद फौज का उदय एवं अवसान
[संपादित करें] रेड फोर्ट की कार्यवाही
[संपादित करें] आज़ाद हिंद फौज पर (अंग्रेजों की) अदालती कार्यवाही
[संपादित करें] फौज की ताक़त
यद्यपि आज़ाद हिंद फौज के सेनानियों की संख्या के बारे में थोड़े बहुत मतभेद रहे हैं परंतु ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि इस सेना में लगभग चालीस हजार सेनानी थे। इस संख्या का अनुमोदन ब्रिटिश इंटेलिजेंस मे रहे कर्नल श्री जीडी एंडरसन ने भी किया है।
जब जापानियों ने सिंगापुरपर कब्जा किया था तो लगभग 45 हजार भारतीय सेनानियों को पकड़ा गया था।
[संपादित करें] आज़ाद हिंद फौज के तमगे
वरीयता के क्रम में
- "शेरे हिंद"
- सरदारे-जंग"
- वीर-ए-हिंद
- शहीद-ए-भारत
[संपादित करें] यह भी देखें
- नेताजी सुभाषचंद्र बोस
- भारतीय स्वाधीनता संग्राम
- अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- नरम दल
- गरम दल
- द्वितीय विश्वयुद्ध
[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ
- मिशन नेताजी
- बांग्लापीडिया पर नेताजी के बारे में
- श्री बोस पर एक रचना
- Website on नेताजी और आईएनए पर एक वेबसाईट
- नेताजी के भाषण
- 17 अगस्त, 1945 को दिया गया नेताजी का ऐतिहासिक भाषण
- आईएनए की वापसी क्यूँ हुई
- बीबीसी रेडियो का कार्यक्रम हिटलर्स इंडियन आर्मी आज़ाद हिंद फौज़ के अंतिम जीवित सिपाही से साक्षात्कार सहित
- द्वितीय विश्वयुद्ध में आज़ाद हिंद फौज की जापानियों से लड़ाई पर बीबीसी की रिपोर्ट
- 'द बाम्बे म्युटिनी, 1946', बियान्ड द ब्राडकास्ट, बीबीसी
- कदम कदम बढाये जा.. - आज़ाद हिंद फौज का तराना