शनि
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शनि सूरज से छटे स्थान पर है और पूरे ब्रह्माण्ड में बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा ग्रह हैं। इसका परिक्रमा पथ १४,२९,४०,००० किलोमीटर लम्बा है। यह ग्रह १,२०,५३६ किलोमीटर चौड़ी और १,०८,७२८ किलोमीटर लम्बा हैं। शनि के कई उपग्रह् है। इसके उपग्रहों की संख्या ५० से अधिक है। जिसमें टाइटन सबसे बड़ा है। टाइटन गिनिमेड के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह् है। शनि ग्रह की खोज प्राचीन काल में ही हो गई थी। गॅलिलिओ नामक व्यक्ति ने सन सोलह सौ दस (१६१०) में दूरबीन से इस ग्रह का आविष्कार किया। वृहस्पति ग्रह की तरह शनि ग्रह भी ७५% हाइड्रोजन और २५% हीलियम से बना है। पानी, मीथेन, अमोनिया और पत्थर भी बहुत कम मात्रा में यहाँ पाए जाते हैं। शनि ग्रह का भीतरी भाग वृहस्पति ग्रह से मिलता जुलता है; पत्थरीला कोर, द्रव धात्वीय हाइड्रोजन की पर्त और आण्विक हाइड्रोजन की पर्त।
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[संपादित करें] शनि के छल्ले
शनि ग्रह के चारों ओर भी कई छल्ले हैं। यह छल्ले बहुत ही पतले होते हैं। हालांकि यह छल्ले चौड़ाई में २५०,००० किलोमीटर है लेकिन यह मोटाई में एक किलोमीटर से भी कम हैं। इन छल्लों के कण मुख्यत: बर्फ और बर्फ से ढ़के पथरीले पदार्थों से बने हैं। वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है जिससे पता चलता है कि शनि ग्रह के छल्ले हो सकता है 4-5 अरब वर्ष पहले बने हों जिस समय सौर प्रणाली अपनी निर्माण अवस्था में ही थी। पहले ऐसा माना जाता था कि ये छल्ले डायनासौर युग में अस्तित्व में आए थे। अमेरिका में वैज्ञानिकों ने नासा के केसनी अंतरिक्ष यान द्वारा एकत्र आँकड़ों का इस्तेमाल करते हुए एक अध्ययन किया और पाया कि शनि ग्रह के छल्ले दस करोड़ साल पहले बनने के बजाय उस समय अस्तित्व में आए जब सौर प्रणाली अपनी शैशवावस्था में थी। साइंस डेली में यह जानकारी दी गई है। 1970 के दशक में नासा के वायजर अंतरिक्ष यान और बाद में हब्बल स्पेस टेलिस्कोप से जुटाए गए आँकड़ों से वैज्ञानिक यह मानने लगे थे कि शनि ग्रह के छल्ले काफी युवा हैं और संभवत: यह किसी धूमकेतु के बड़े चंद्रमा से टकराने के कारण पैदा हुए हैं। केसिनी अल्ट्रावायलेट इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ के मुख्य जाँचकर्ता प्रोफेसर लैरी एस्पोसिटो के अनुसारु हमें यह पता चला है कि ये छल्ले कुछ समय पहले ही अस्तित्व में नहीं आए हैं। वे संभवत: हमेशा से थे लेकिन उनमें लगातार बदलाव आता रहा और वे कई अरबों साल तक अस्तित्व में रहेंगे। [१]
[संपादित करें] घने गुबार के बीच दरारें
शनि ग्रह के दो नन्हे चंद्रमा की कक्षाओं के निकट उच्च ऊर्जा वाले कणों के घने गुबार के बीच दरारें हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि शनि तकरीबन अदृश्य और आंशिक वलयों से घिरा हुआ है। नासा के कैसिनी उपग्रह से ली गई तस्वीरों के अध्ययन के बाद खगोलविद इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रानों की अनवरत झड़ी के बीच दो रहस्यमयी दरारें हैं। कैसिनी उपग्रह जब शनि के निकट पहुँचा था, तो उस पर भी इन इलेक्ट्रान की बारिश हुई। ये दरारें हाल में खोजे गए शनि के दो चंद्रमा-मेथान और एंथ की कक्षाओं के बेहत निकट है। ये दोनों चंद्रमा मिमास और इंसेलाडस की कक्षाओं के बीच स्थित हैं। सौर मंडल के शोध से जुड़े जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के अग्रणी खगोलविद एलियस रौसास का कहना है कि यह खोज इस बात का संकेत देती है कि शनि के नन्हे चंद्रमा शनि मंडल में गर्द-गुबार के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। कैसिनी ने मेथन और एंथ के बीच जिन दरारों का विश्लेषण किया है वे उनकी चौड़ाई एक हजार से तीन हजार किलोमीटर तक है। इस अध्ययन से इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि शनि के दोनों छोटे चंद्रमा अपनी सतह से धूल छोड़ते हैं। यही कक्षा के साथ एक या उससे अधिक वृत्तखंड बनाते हैं। हर वलय का वृत्तखंड कुछेक हजार किलोमीटर चौड़ा होता है। इसमें धूल के बड़े कण से लेकर पिंड तक शामिल होते हैं। [२]
[संपादित करें] संदर्भ
- ↑ शनि के छल्ले 4-5 अरब वर्ष पुराने (एचटीएम)। वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: २० मई, 2008।
- ↑ शनि पर यह किसका साया है। हिन्दी मीडिया। अभिगमन तिथि: २० मई, 2008।
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