बीकानेर
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बीकानेर | |
प्रदेश - जिले |
राजस्थान - बीकानेर |
स्थान | 28.01° N 73.19° E |
क्षेत्रफल - समुद्र तल से ऊँचाई |
२७० वर्ग की.मी
|
समय मण्डल | IST (UTC+5:30) |
जनसंख्या (२००१) - घनत्व |
५२९,००७ - १९६०/वर्ग.कि.मी. |
महापौर | |
नगर पालिका अध्यक्ष | |
संकेतक - डाक - दूरभाष - वाहन |
- ३३४० - - - +९१-१५१ - आरजे |
बीकानेर राजस्थान प्रान्त का एक शहर है। बीकानेर राज्य का पुराना नाम जांगल देश था। इसके उत्तर में कुरु और मद्र देश थे, इसलिए महाभारत में जांगल नाम कहीं अकेला और कहीं कुरु और मद्र देशों के साथ जुड़ा हुआ मिलता है। बीकानेर के राजा जंगल देश के स्वामी होने के कारण अब तक "जंगल धर बादशाह' कहलाते हैं। [१] बीकानेर राज्य तथा जोधपुर का उत्तरी भाग जांगल देश था [२]
राव बीका द्वारा 1485 में इस शहर की स्थापना की गई। ऐसा कहा जाता है कि नेरा नामक व्यक्ति इस संपूर्ण जगह का मालिक था तथा उसने राव बीका को यह जगह इस शर्त पर दी की उसके नाम को नगर के नाम से जोड़ा जाए। इसी कारण इसका नाम बीका+नेर, बीकानेर पड़ा। [३] अक्षय तृतीया के यह दिन आज भी बीकानेर के लोग पतंग उड़ाकर स्मरण करते हैं। बीकानेर का इतिहास अन्य रियासतों की तरह राजाओं का इतिहास है। महाराजा गंगासिंह जी ने नवीन बीकानेर रेल नहर व अन्य आधारभूत व्यवस्थाओं से समृद्ध किया। बीकानेर की भुजिया मिठाई व जिप्सम तथा क्ले आज भी पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। यहां सभी धर्मों व जातियों के लोग शांति व सौहार्द्र के साथ रहते हैं यह यहां की दूसरी महत्वपूर्ण विशिष्टता है। यदि इतिहास की बात चल रही हो तो इटली के टैसीटोरी का नाम भी बीकानेर से बहुत प्रेम से जुड़ा हुआ है। बीकानेर शहर के 5 द्वार gates आज भी आंतरिक शहर की परंपरा से जीवित जुड़े हैं। कोटगेट, जस्सूसरगेट, नत्थूसरगेट,गोगागेट व शीतलागेट इनके नाम हैं। [४]
बीकानेर की भौगोलिक स्तिथि २८.01 डिग्री पूर्वी अक्षांस ७३ उत्तरी देशंतार पे है| समुद्र तल से ऊंचाई सामान्य रूप से २४३मीटर अथवा ७९७ फीट है
अनुक्रम |
[संपादित करें] इतिहास
बीकानेर एक अलमस्त शहर है ,अलमस्त इसलिए कि यहाँ के लोग बेफ्क्रि के साथ अपना जीवन यापन करते है । इसका कारण यह भी है कि बीकानेर के सँस्थापक राव बीकाजी अलमस्त स्वभाव के थे अलमस्त नहीँ होते तो वे जोधपुर राज्य की गद्दी को यो हीँ बात बात मे छोड देते । उस समय तो बेटा बाप को मार कर गद्दी पे बैठ जाता था। जैसा कि इतिहास मे मिलता है यथा राव मालदेव ने अपने पिता राव गाँगा को गढ की खिडकी से नीचे फेंक कर किया था और जोधपुर की सत्ता हथिया ली थी। इसके विरूद्ध बीकाजी ने अपनी इच्छा से जोधपुर की गद्दी छोडी।
इसके पीछे दो कहानियाँ लोक मे प्रचलित है । एक तो यह कि , नापा साँखला जो कि बीकाजी के मामा थे उन्होंने जोधाजी
से कहा कि आपने भले ही सांतळ जी को जोधपुर का उत्तराधिकारी बनाया किंतु बीकाजी को कुछ सैनिक सहायता सहित
सारुँडे का पट्टा दे दीजिये । वह वीर तथा भाग्य का धनी है। वह अपने बूते खुद अपना राज्य स्थापित कर लेगा ।
जोधाजी ने नापा की सलाह मान ली। और पचास सैनिकों सहित पट्टा नापा को दे दिया।
बीकाजी ने यह फैसला राजी खुशी मान लिया। उस समय कांधल जी, रूपा जी, मांडल जी, नथु जी, और नन्दा जी ये पाँच
सरदार जो जोधा के सगे भाई थे साथ ही नापा साँखला ,बेला पडिहार,लाला लखन सिंह बैद, चौथमल कोठारी, नाहर सिंह बच्छावत , विक्रम सिंह पुरोहित, सालू जी राठी आदि कई लोगों ने बीकाजी का साथ दिया।
इन सरदारों के साथ बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की।
सालू जी राठी जोधपुर के ओंसिया गाँव के निवासी थे। वे अपने साथ अपने आराधय देव मरूनायक या मूलनायक की मूर्ति साथ लायें आज भी उनके वंशज साले की होली पे होलिका दहन करते है । साले का अर्थ बहन के भाई के रूप मे न होकर सालू जी के अपभ्रंश के रूप मे होता है
बीकाने की स्थापना के पीछे दूसरी कहानी ये है कि एक दिन राव जोधा दरबार मे बैठे थे बीकाजी दरबार मे देर से आये तथा प्रणाम कर
अपने चाचा कांधल से कान मे धीर धीरे बात करने लगे यह देख कर जोधा ने व्यँगय मे कहा “ मालूम होता है कि चाचा-भतीजा किसी नवीन राज्य को विजित करने की योजना बना रहे है’।
इस पर बीका और कांधल ने कहाँ कि यदि आप की कृप्या हो तो यही होगा ।और इसी के साथ चाचा – भतीजा दोनों दरबार से उठ के
चले आये तथा दोनों ने बीकानेर राज्य की स्थापना की । इस संबंध मे एक लोक दोहा भी प्रचलित है
‘ पन्द्रह सौ पैंतालवे ,सुद बैसाख सुमेर
थावर बीज थरपियो, बीका बीकानेर ‘
इस प्रकार एक ताने की प्रतिक्रिया से बीकानेर की स्थापना हुई वैसे ये क्षेत्र तब भी निर्जन नहीं था इस क्षेत्र मे जाट जाति के कई गाँव थे
[संपादित करें] भूगोल
[संपादित करें] जलवायु
[संपादित करें] राजनीति
[संपादित करें] संस्कृति
साहित्य की दृष्टि से बीकानेर का प्राचीन राजस्थानी साहित्य ज्यादातर चारण ,संत और जैनों द्वारा लिखा गया था ।
चारण राजा के आश्रित थे तथा डिंगल शैली तथा भाषा मे अपनी बात कहते थे । बीकानेर के संत लोक शैली मे लिखतें थे ।
बीकानेर का लोक साहित्य भी काफी महत्वपूर्ण है ।
राजस्थानी साहित्य के विकास मे बीकनेर के राजाओं का भी योगदान रहा है उनके द्वारा साहित्यकारों को आश्रय़ मिलता रहा था ।
राजपरिवार के कई सदस्यों ने खुद भी साहित्य मे जौहर दिखलायें।
राव बीकाजी ने माधू लाल चारण को खारी गाँव दान मे दिया था ।
बारहठ चौहथ बीकाजी के समकलीन प्रसिद्ध चारण कवि थे ।
इसी प्रकार बीकाने के चारण कवियों ने बिठू सूजो का नाम बडे आदर से लिया जाता है ।
उनका काव्य ‘ राव जैतसी के छंद ‘ डिंगल साहित्य मे उँचा स्थान रखती है ।
बीकानेर के राज रायसिंह ने भी ग्रंथ लिखे थे उनके द्वारा ज्योतिष रतन माला नामक ग्रंथ की राजस्थानी मे टीका लिखी थी ।
रायसिंह के छोटे भाई पृथ्वीराज राठौड राजस्थानी के सिरमौर कवि थे वे अकबर के दरबार मे भी रहे थे वेलि क्रिसन रुक्मणी री नामक रचना लिखी जो राजस्थानी की सर्वकालिक श्रेष्ठतम रचना मानी जाती है ।
बीकानेर के जैन कवि उदयचंद ने बीकानेर गजल [नगर वर्णन को गजल कहा गया है ] रचकर नाम कमाया था। वे महाराजा सुजान सिंह की तारीफ करते थे
[संपादित करें] उत्सव तथा मेले
[संपादित करें] पर्यटन आकर्षण
[संपादित करें] जनसंख्या
[संपादित करें] बीकानेर मे शिक्षा
[संपादित करें] जाने माने लोग
भरत व्यास पंडित नरोत्तम दास स्वामी, सूर्यकरण पारीक, ठाकुर रामसिंह , शम्भु दयाल सकसेना, श्री लाल नथमल जोशी, अगर चंद नाहटा , मनोहर शर्मा, छगन मोहता, हरीश भादाणी, नंदकिशोर आचार्य , यादवेन्द्र शर्मा चन्द्र, अन्नाराम सुदामा , माल चंद तिवाडी, वासु आचार्य , भवानी शंकर व्यास विनोद, तथा लक्ष्मी नाराय़ण रंगा के नाम प्रमुख है
[संपादित करें] शीर्षक
[संपादित करें] सन्दर्भ
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