अलंकार
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अलंकार कविता कामिनी के सौन्दर्य को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। कहा गया है - अलंकरोति इति अलंकारः (जो अलंकृत करता है, वही अलंकार है।)
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[संपादित करें] अलंकार के भेद
शब्दालंकारː जब शब्दों के द्वारा कविता के सौन्दर्य में निखार लाया जाता है तो उसे शब्दालंकार कहते हैं।
अर्थालंकारː जब शब्दों के अर्थ के द्वारा कविता के सौन्दर्य को बढ़ाया जाता है तो उसे अर्थालंकार कहते हैं।
उभयालंकारː जब शब्दों तथा शब्दों के अर्थ दोनों ही के द्वारा कविता की सुन्दरता में वृद्धि की जाती है तो उसे उभयालंकार कहते हैं।
[संपादित करें] शब्दालंकारों की सूची
[संपादित करें] उपमा अलंकार
काव्य में जब किसी प्रसिद्ध व्यक्ति या वस्तु की समता दूसरे समान गुण वाले व्यक्ति या वस्तु से की जाती है तब उपमा अलंकार होता है। उदाहरण -
पीपर पात सरिस मन डोला ।
राधा बदन चन्द्र सो सुन्दर।
[संपादित करें] अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी बात को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाये, तब वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण -
हनुमान की पूँछ में, लगन न पायी आग।
सगरी लंका जर गई, गए निशाचर भाग।।[१]
[संपादित करें] विभावना अलंकार
जहाँ कारण के न होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता है, वहाँ विभावना अलंकार होता है। उदाहरण -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
[संपादित करें] संदर्भ
- ↑ आत्म उदगार (पीएचटीएमएल)। Vijay Kumar Agrawal। अभिगमन तिथि: १६ अप्रैल, 2008।