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कम्प्यूटर प्रोग्राम - विकिपीडिया

कम्प्यूटर प्रोग्राम

विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से

कम्प्यूटर प्रोग्राम किसी कार्य विशेष को कम्प्यूटर द्वारा कराने अथवा करने के लिये कम्प्यूटर को समझ आने वाली भाषा मे दिये गए निर्देशो के समूह होता है।

अनुक्रम

[संपादित करें] प्रोग्रामिंग

किसी कार्य विशेष को कम्प्यूटर द्वारा कराने अथवा करने के लिये निर्देशो के समूह को क्रमबद्ध करके कम्प्यूटर को समझ आने वाली भाषा मे प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को प्रोग्रामिंग कहते है। प्रोग्रामिंग system development चक्र का एक महत्वपूर्ण चरण है और यह तब प्रारंभ होता है जब किसी प्रोग्राम को तैयार कर लिया जाता है एवं उसके समस्त निर्दिष्टीकरण पूर्ण हो चुके हो।

[संपादित करें] प्रोग्रामिंग के विभिन्न चरण

किसी भी प्रोग्राम की प्रोग्रामिंग करने के लिये सर्वप्रथम प्रोग्राम के समस्त निर्दिष्टीकरण को भली-भॉंति समझ लिया जाता है।प्रोग्राम मे प्रयोग की गई सभी शर्तो का अनुपालन सही प्रकार से हो रहा है या नही,यह भी जांच लिया जाता है।अब प्रोग्राम के सभी निर्दिष्टीकरण को जांचने-समझने के उपरांत प्रोग्राम के शुरू से वांछित परिणाम प्राप्त होने तक के सभी निर्देशो को विधिवत क्रमबध्द कर लिया जाता है अर्थात प्रोग्रामो की डिजाइनिंग कर ली जाती है।प्रोग्राम की डिजाइन को भली-भांति जांचकर ,प्रोग्राम की कोडिंग की जाती है एवं प्रोग्राम को कम्पाईल किया जाता है।प्रोग्राम को टेस्ट डाटा इनपुट करके प्रोग्राम की जांच की जाती है कि वास्तव मे सही परिणाम प्राप्त हो रहा है या नही।यदि परिणाम सही नही होते है तो इसका अर्थ है कि प्रोग्राम के किसी निर्देश का क्रम गलत है अथवा निर्देश किसी स्थान पर गलत दिया गया है।यदि परिणाम सही प्राप्त होता है तो प्रोग्राम मे दिये गये निर्देशो के क्रम को एकबध्द कर लिया जाता है एवं निर्देशो के इस क्रम को कम्प्यूटर मे स्थापित कर दिया जाता है । इस प्रकार प्रोग्रामिंग की सम्पूर्ण प्रक्रिया सम्पन्न होती है।

[संपादित करें] प्रोग्राम के लक्षण

किसी भी उच्च कोटि के प्रोग्राम मे निम्नांकित लक्षण वांछनीय होते है-

  1. शुध्दता-कोइ भी प्रोग्राम अपने उद्देश्य को पूर्ण करता हुआ होना चाहिए।प्रोग्राम मे वांछित परिणाम को प्राप्त करने की प्रक्रिया एवं निर्देश पूर्ण रूप से सत्य एवं दोष रहित होने चाहिए ,अर्थात यदि किसी इनपुट से गलत परिणाम प्राप्त होता है तो प्रोग्राम पर कार्य करने वाला उपयोक्ता निश्चय ही यह जान ले कि उससे डाटा इनपुट करने मे ही कोइ गलती हुइ है क्योंकि सही इनपुट से सही परिणाम अवश्य प्राप्त होता है।
  2. विश्वसनीयता-प्रोग्राम की विश्वसनीयता से तात्पर्य है कि प्रयोगकर्ता इस पर कार्य करते समय यदि कोइ त्रुटि करता है तो उसे इस गलती से संबंधित स्पष्ट त्रुटि संदेश प्राप्त होना चाहिये ताकि वह उस त्रुटि को ठीक करके अपना कार्य सुचारू रूप से कर सकें।
  3. सक्षमता-प्रोग्राम विभिन्न स्त्रोतो से प्राप्त डाटा के प्रबन्धन मे सक्षम होना चाहिये।
  4. प्रयोग करने मे सुगम -प्रोग्राम मे दिये गये निर्देश इस प्रकार व्यवस्थित होने चाहिये कि प्रयोगकर्ता को इस पर कार्य करने मे समस्याओ का सामना न करना पडे।प्रोग्राम को प्रयोग करने मे समस्त संभावित समस्याओ को हल करके कार्य को आगे बढाने के लिये सहायता प्रयोगकर्ता को प्रोग्राम मे ही उपलब्ध होनी चाहिये।
  5. पठनीयता-प्रोग्राम की पठनीयता से तात्पर्य है कि प्रयोगकर्ता को प्रोग्राम पर कार्य करते समय विभिन्न परिवर्तनांको के लिये स्पष्ट सूचनायें प्राप्त हो;अर्थात यदि प्रोग्राम मे किसी स्थान पर name इनपुट करना है तो प्रोग्राम ,ए उसका परिवर्तनांक name अथबा इससे मिलता- जुलता होना चाहिये ताकि प्रयोगकर्ता यह समझ सके कि उसे यहां पर name इनपुट करना है।

[संपादित करें] कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग किस प्रकार की जाती है?

कम्प्यूटर के कार्य करने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है।कम्प्यूटर की अपनी स्मृति तो होती है लेकिन बुद्धि नही होती।कम्प्यूटर मात्र वही कार्य करता है,जिसका कि उसे निर्देश दिया जाता है;अर्थात कम्प्यूटर को कार्य की बुद्धि क्रमबद्ध निर्देशो अथवा प्रोग्राम द्वारा दी जाती है।कम्प्यूटर मे प्रोग्राम ’की-बोर्ड’ पर टाईप करके फीड किया जाता है,प्रोग्राम मे कम्प्यूटर को क्या क्या ,किस प्रक्रार करना है,यह स्पष्ट एवं क्रमबद्ध रूप मे लिखा जाता है।
कल्पना किजीये कि किसी व्यक्ति को दो कप चाय बनाने का कार्य दिया गया। अब हमे कम्प्यूटर को चाय बनाने से सम्बंधित सभी निर्देश निश्चित क्रम मे देने होंगे। यदि निर्देश मौखिक रूप से देने हो तो ये निम्नानुसार होंगे:-
१.रसौई घर मे जाईये।
२.एक कप लें।
३.पानी की टोटी खोले।
४.कप मे पानी भरकर टोटीं को बन्द कर दे।
५.कप को स्लेब पर रख दे।
६.चाय का भगोना लें।
७.स्लैब पर रखे कप का पानी चाय के भगोने मे उलट दे।
८.चाय का भगोना गैस बर्नर पर रख दे।
९.गैस लाईटर जलाये।
१०.एक हाथ से गैस की नॉब को ऑन करें तथा साथ ही लाईटर भी जलाऎ।
११ यदि गैस नही जलती है तो नॉब को ऑफ करे और अब क्रमांक ९ वाली क्रिया को दोहराये ।
१२.यदि गैस जल जाती है तो चाय के भगोने के पानी को तब तक गरम होने दे जब तक कि वह उबलने न लगे।
१३. पानी गरम होने की अवधि मे चाय व चीनी का डिब्बा जिन पर क्रमश: चाय और चीनी लिखा है; और एक चम्मच अपने पास रख लें।
१४. पानी के उबलने पर चाय का डिब्बा खोलकर आधा चम्मच चाय और उसके बाद चीनी का डिब्बा खोलकर एक चम्मच चीनी उसमे डाल दे।
१५.चाय व चीनी के डिब्बो को बन्द करके जहां से उठाये थे वही रख दे।
१६.अब दूध के भगोने मे से एक कप दूध ले लें।
१७.अब पानी के पुनः उबलने पर उसमे कप का दूध डाले ।
१८.इस मिश्रण के उबलने पर गैस की नॉब को ऑफ कर दे।
१९.एक ट्रे ले।
२०.इस ट्रे मे दो प्लेटे अलग अलग रखिये।
२१.ट्रे मे रखी गयी प्लेटो मे एक एक कप रखिये।
२२.अब चाय छन्नी व संडासी ले।
२३.संडासी से चाय के भगोने को पकडकर छननी एक कप के ऊपर रखकर चाय छानिए और तब तक छानिए जब तक की कप ८०% न भर जाये।
२४.क्रमांक २३ वाली क्रिया को दूसरे कप के लिये दोहराये।
२५.दोनो कपो मे चाय भर जाने के पश्चात छननी व चाय के भगोने को सिंक मे रख दिजिए।
आपने देखा कि चाय बनाने के लिये स्पष्ट एवं एक निश्च्चित क्रम मे निर्देश दिये गए। ये निर्देश किसी ऎसे व्यक्ति से भी चाय बनवाने के लिये पर्याप्त है जिसने कभी चाय न बनाई हो। इसी प्रकार कम्प्यूटर से कोइ कार्य कराने के लिये उसे स्पष्ट एवं निश्चित क्रम मे निर्देश दिये जाते है;और यही प्रक्रिया कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग है।


[संपादित करें] प्रोग्रामिंग मे ध्यान रखने योग्य बाते

१.किसी कार्य विशेष के लिये प्रोग्राम कई प्रकार से तैयार किया जा सकता है।
२.प्रोग्राम तैयार करने हेतु विभिन्न निर्देश के लिये विशेष शब्दो का प्रयोग किया जाता है। ये विशेष शब्द कमांड कहलाते है।
३.प्रोग्राम मे निर्देश उसी क्रम मे लिखे जाते है,जिस क्रम से वह कार्य सम्पन्न होता है।
४.प्रोग्राम कम्प्यूटर की समझ आने वाली भाषाओ अर्थात programming language अथवा उन सॉफ्टवेयर्स,जिनमे कि प्रोग्रामिंग करने की सुविधा है, मे लिखा जाता है।

[संपादित करें] कम्प्यूटर अपनी भाषा किस प्रकार समझता है

कम्प्यूटर केवल मशीनी भाषा समझता है।विभिन्न प्रोग्रामिंग भाषा मे लिखे गए प्रोग्राम मे निर्देशो को Assembler, compiler अथवा Interpreter की सहायता से मशीनी भाषा मे परिवर्तित करके कम्प्यूटर के माईकोप्रोसेसर मे भेजा जाता है। तभी कम्प्यूटर इन निर्देशो का पालन कर उपयुक्त परिणाम प्रस्तुत करता है।मशीनी भाषा मात्र बायनरी अंको अर्थात 0 से १ के समूहो से बनी होती है जिसे कम्प्यूटर का माईकोप्रोसेसर सीधे समझ सकता है।
जब हम कम्प्यूटर को कोइ भी निर्देश किसी इनपुट के माध्यम से देते है तो कम्प्यूटर स्वतः इन निर्देशो को ASCII Code मे परिवर्तित कर सकता है।निर्देश देने के लिये हमे सामान्यत: अक्षरो, संख्याओ एवं संकेतो के "कीज" को की-बोर्ड पर दबाना होता है और कम्प्यूटर स्वतः ही इन्हे अपनी भाषा मे बदल लेता है।
example-TYPE मशीनी भाषा मे -T(01000101) Y(10010101) P(00000101)E(01010100)


[संपादित करें] कम्प्यूटर को निर्देश किस प्रकार देते है

कम्प्यूटर को निर्देश योजनाबध्द तरीके से, अत्यन्त स्पष्ट भाषा मे एवं विस्तार से देना अत्यन्त आवश्यक होता है। कम्प्यूटर को कार्य विशेष करने के लिये एक प्रोग्राम बनाकर देना होता है। दिया गया प्रोग्राम जितना स्पष्ट ,विस्तृत और सटीक होगा, कम्प्यूटर उतने ही सुचारू रूप से कार्य करेगा, उतनी ही कम गलतिया करेगा और उतने ही सही उत्तर देगा। यदि प्रोग्राम अस्पष्ट होगा और उसमे समुचित विवरण एवं स्पष्ट निर्देश नही होंगे तो यह संभव है कि कम्प्यूटर बिना परिणाम निकाले ही गणना करता रहे अथवा उससे प्राप्त परिणाम अस्पष्ट और निरर्थक हो।अतः प्रोग्राम अत्यन्त सावधानी और एकाग्रचित होकर तैयार करना चाहिये। कम्प्यूटर की सम्पूर्ण कार्यक्षमता प्रोग्रामर अर्थात प्रोग्राम बनाने वाले व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर होती है।
कम्प्यूटर मे अपनी कोइ बुध्दि नही होती। यह एक मस्तिष्क रहित एवं अत्यन्त आज्ञाकारी मशीन है।यदि उसे कोइ निर्देश नही दिया जाता अथवा अस्पष्ट निर्देश दिया जाता है तब भी वह कोइ आपत्ति नही करता और दिए गए निर्देशानुसार ही कार्य करता है। अतः प्रोग्राम बनाते समय अत्यन्त सावधानी बरतनी पडती है।
कम्प्यूटर पर प्रोग्राम बनाते समय निम्न बातो को ध्यान मे रखना आवध्यक है:-
१.समस्या का सावधानीपूर्वक अध्ययन करके निर्देशो को निश्चित क्रम मे क्रमबध्द करना।
२.निर्देश इस प्रकार लिखना कि उनका अक्षरशः पालन करने पर समस्या का हल निकल सके।
३.प्रत्येक निर्देश एक निश्चित कार्य करने के लिये हो।
प्रोग्राम मे दिये जाने वाले निर्देशो को एक प्रवाह तालिका के रूप मे प्रस्तुत करना उचित होता है।इसमे यह स्पष्ट होना चाहिये कि कम्प्यूटर को कब और क्या करना है एवं उसे विभिन्न क्रियाये किस रूप मे करनी है।सामान्यत:प्रोग्राम को ऊपर से नीचे की ओर प्रवाह चित्र के रूप मे दर्शाया जाता है एवं जहां तर्क आदि करना होता है वहां यह दो भागो मे विभक्त कर दिया जाता है। प्रोग्राम मे निर्देशो को कम्प्यूटर की समझ मे आने वाली भाषा मे लिखना आवश्यक होता है; ताकि लम्प्यूटर प्रदत्त निर्देशो को समझ सके और उनके अनुसार कार्य करके वांछित परिणाम प्रस्तुत कर सके। एक बार प्रोग्राम को कम्प्यूटर भाषा मे लिखने के बाद इसे कम्प्यूटर की स्मृति मे अर्थात फ्लॉपी,चुम्बकीय फीते,छिद्रित कार्ड आदि निवेश युक्तियो पर अंकित कर दिया जाता है। साथ ही यह समस्या को हल करने के लिये आवश्यक डाटा भी कम्प्यूटर की इनपुट यूनिट को प्रदान किया जाता है।अब कम्प्यूटर उस प्रोग्राम के अनुसार कार्य करके इनपुट डाटा का विश्लेषण प्रदर्शित करके उचित परिणाम प्रस्तुत करता है।यदि प्रोग्राम मे प्राप्त परिणामो को मॉनीटर स्क्रीन पर प्रदर्शित करने अथवा फ्लॉपी,हार्डडिस्क या चुम्बकीय फीते पर अंकित करने के निर्देश दिये गए है तब कम्प्यूटर प्राप्त परिणामो को वहीं अंकित कर देता है।
''झूकी मूल{| class="wikitable" |-

header 1 header 2 header 3
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row 2, cell 1 row 2, cell 2 row 2, cell 3

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[संपादित करें] शब्दावली

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