दीपावली
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दीपों की जगमग | |
आधिकारिक नाम | दीपावली |
अन्य नाम | दिवाली, दीवाली |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
प्रकार | धार्मिक, सामाजिक |
उद्देश्य | धार्मिक निष्ठा, उत्सव, मनोरंजन |
आरम्भ | रामायण काल से |
तिथि | कार्तिक अमावस्या |
२००७ तिथि | 9 नवंबर |
२००८ तिथि | 28 अक्तूबर |
अनुष्ठान | गणेश-लक्ष्मी पूजन व दीपमाला |
उत्सव | रौशनी, सजावट, आतिशबाज़ी |
समान पर्व | छोटी दीवाली या नरक चौदस |
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति । माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौहद वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे । अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से उल्लासपूर्ण था । श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए । कार्तिक मास की घनघोर काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी । तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। अधिकतर यह पर्व ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्तूबर या नवंबर महीने में पड़ती है। दीपावली दीपों का त्योहार है | इसे दीवाली या दीपावली भी कहते हैं । दिवाली अन्धेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक है | भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है | दिवाली यही चरितार्थ करती है - असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय ।
अनुक्रम |
[संपादित करें] दीपावली की कहानियाँ
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं।
राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध कर के अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है।
कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृण्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था । इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए । एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए ।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है । दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है । कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है । लोग अपने घरों , दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं । घरों में मरम्मत , रंग-रोगन ,सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं । लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा का सजाते हैं । बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है । दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले , बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं ।
सिक्खों के लिए भी दिवाली महत्वपूर्ण है क्यों कि इसी दिन ही अमृत्सर में १५७७ में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा १६१९ में दिवाली के दिन सिक्खों के छ्टे गुरु हरगोबिन्द सिंघ जी को जेल से रिहा किया गया था।
नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्यों कि इस दिन से [नेपाल संवत]] में नया वर्ष शरू होता है।
[संपादित करें] पर्वों का समूह दीपावली
दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है । दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है । लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं । दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है । इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है । बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है । धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है । इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है ।
इससे अगले दिन नरक चौदस या छोटी दीपावली होती है । इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं । अगले दिन दीपावली आती है । इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं । बाज़ारों में खील-बताशे , मिठाइयाँ ,खांड़ के खिलौने , लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं । स्थान-स्थान पर आतिशबाजियों और पटाखों की दुकानें सजी होती हैं । सुबह से ही लोग रिश्तेदारों , मित्रों , सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं ।
दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है । पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं । चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं । रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं । बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं । रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ , आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं । देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है ।
दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था । इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं । अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है ।
दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते है । वे दुकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं । उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी । कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है । खरीफ़ की फसल पककर तैया हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं । कृषक समाज अपनी समद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं ।
[संपादित करें] परंपरा
अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास , भाईचारे व प्रेम का संदेश फैलाता है । यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक , सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है ।
हर प्रांत या क्षेत्र में दिवाली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है | लोगों में दीवाली की बहुत उमंग होती है | लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं ; नये कपड़े पहनते हैं । सब मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं । घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है | बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं |
यह त्योहार सिक्खों और जैनों के लिये भी महत्वपूर्ण है। जैनों के लिये इसलिए कि इस दिन महावीर जी ने मोक्ष (या निर्वाण) पाया था। और सिक्खों के लिये इसलिए कि
[संपादित करें] बाह्य सूत्र
[संपादित करें] संदर्भ
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